ترجمة معاني سورة:
المائدة
آية:
سورة المائدة - सूरा अल्-माइदा
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَوۡفُواْ
بِٱلۡعُقُودِۚ أُحِلَّتۡ لَكُم بَهِيمَةُ ٱلۡأَنۡعَٰمِ إِلَّا مَا يُتۡلَىٰ
عَلَيۡكُمۡ غَيۡرَ مُحِلِّي ٱلصَّيۡدِ وَأَنتُمۡ حُرُمٌۗ إِنَّ ٱللَّهَ
يَحۡكُمُ مَا يُرِيدُ
हे वो लोगो जो ईमान लाये हो!
प्रतिबंधों का पूर्ण रूप[1] से पालन करो। तुम्हारे लिए सब पशु ह़लाल (वैध)
कर दिये गये, परन्तु, जिनका आदेश तुम्हें सुनाया जायेगा, लेकिन एह़राम[2]
की स्थिति में शिकार न करो। बेशक अल्लाह जो आदेश चाहता है, देता है।
1. यह प्रतिबंध धार्मिक आदेशों से संबंधित हों
अथवा आपस के हों। 2. अर्थात जब ह़ज्ज अथवा उमरे का एह़राम बांधे रहो।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا
تُحِلُّواْ شَعَـٰٓئِرَ ٱللَّهِ وَلَا ٱلشَّهۡرَ ٱلۡحَرَامَ وَلَا
ٱلۡهَدۡيَ وَلَا ٱلۡقَلَـٰٓئِدَ وَلَآ ءَآمِّينَ ٱلۡبَيۡتَ ٱلۡحَرَامَ
يَبۡتَغُونَ فَضۡلٗا مِّن رَّبِّهِمۡ وَرِضۡوَٰنٗاۚ وَإِذَا حَلَلۡتُمۡ
فَٱصۡطَادُواْۚ وَلَا يَجۡرِمَنَّكُمۡ شَنَـَٔانُ قَوۡمٍ أَن صَدُّوكُمۡ
عَنِ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ أَن تَعۡتَدُواْۘ وَتَعَاوَنُواْ عَلَى
ٱلۡبِرِّ وَٱلتَّقۡوَىٰۖ وَلَا تَعَاوَنُواْ عَلَى ٱلۡإِثۡمِ
وَٱلۡعُدۡوَٰنِۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۖ إِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
हे ईमान वालो! अल्लाह की
निशानियों[1] (चिन्हों) का अनादर न करो, न सम्मानित मासों का[2], न (ह़ज
की) क़ुर्बानी का, न उन (ह़ज की) क़ुर्बानियों का, जिनके गले में पट्टे
पड़े हों और न उनका, जो अपने पालनहार की अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की खोज
में सम्मानित घर (काबा) की ओर जा रहे हों। जब एह़राम खोल दो, तो शिकार कर
सकते हो। तुम्हें किसी गिरोह की शत्रुता इस बात पर न उभार दे कि अत्याचार
करने लगो, क्योंकि उन्होंने मस्जिदे-ह़राम से तुम्हें रोक दिया था, सदाचार
तथा संयम में एक-दूसरे की सहायता करो तथा पाप और अत्याचार में एक-दूसरे की
सहायता न करो और अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला
है।
1. अल्लाह की वंदना के लिये निर्धारित चिन्हों का।
2. अर्थात ज़ुलक़ादा, ज़ुलह़िज्जा, मुह़र्रम तथा रजब के मासों में युध्द न
करो।
التفاسير العربية:
حُرِّمَتۡ عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَيۡتَةُ وَٱلدَّمُ
وَلَحۡمُ ٱلۡخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ لِغَيۡرِ ٱللَّهِ بِهِۦ
وَٱلۡمُنۡخَنِقَةُ وَٱلۡمَوۡقُوذَةُ وَٱلۡمُتَرَدِّيَةُ وَٱلنَّطِيحَةُ
وَمَآ أَكَلَ ٱلسَّبُعُ إِلَّا مَا ذَكَّيۡتُمۡ وَمَا ذُبِحَ عَلَى
ٱلنُّصُبِ وَأَن تَسۡتَقۡسِمُواْ بِٱلۡأَزۡلَٰمِۚ ذَٰلِكُمۡ فِسۡقٌۗ
ٱلۡيَوۡمَ يَئِسَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن دِينِكُمۡ فَلَا تَخۡشَوۡهُمۡ
وَٱخۡشَوۡنِۚ ٱلۡيَوۡمَ أَكۡمَلۡتُ لَكُمۡ دِينَكُمۡ وَأَتۡمَمۡتُ
عَلَيۡكُمۡ نِعۡمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ ٱلۡإِسۡلَٰمَ دِينٗاۚ فَمَنِ
ٱضۡطُرَّ فِي مَخۡمَصَةٍ غَيۡرَ مُتَجَانِفٖ لِّإِثۡمٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ
غَفُورٞ رَّحِيمٞ
तुमपर मुर्दार[1] ह़राम (अवैध)
कर दिया गया है तथा (बहता हुआ) रक्त, सूअर का मांस, जिसपर अल्लाह से अन्य
का नाम पुकारा गया हो, जो श्वास रोध और आघात के कारण, गिरकर और दूसरे के
सींग मारने से मरा हो, जिसे हिंसक पशु ने खा लिया हो, -परन्तु इनमें[2] से
जिसे तुम वध (ज़िब्ह) कर लो- जिसे थान पर वध किया गया हो और ये कि पाँसे
द्वारा अपना भाग निकालो। ये सब आदेश-उल्लंघन के कार्य हैं। आज काफ़िर
तुम्हारे धर्म से निराश[3] हो गये हैं। अतः, उनसे न डरो, मुझी से डरो।
आज[4] मैंने तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिय है तथा तुमपर अपना
पुरस्कार पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप स्वीकार कर
लिया है। फिर जो भूक से आतुर हो जाये, जबकि उसका झुकाव पाप के लिए न
हो,(प्राण रक्षा के लिए खा ले) तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
1. मुर्दार से अभिप्राय वह पशु है, जिसे धर्म के
नियमानुसार वध (ज़िब्ह़) न किया गया हो। 2. अर्थात जीवित मिल जाये और उसे
नियमानुसार वध (ज़िब्ह़) कर दो। 3. अर्थात इस से कि तुम फिर से मूर्तियों
के पुजारी हो जाओगे। 4. सूरह बक़रह आयत संख्या 28 में कहा गया है कि
इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने यह प्रार्थना की थी कि "इन में से एक आज्ञाकारी
समुदाय बना दे"। फिर आयत 150 में अल्लाह ने कहा कि "अल्लाह चाहता है कि तुम
पर अपना पुरस्कार पूरा कर दे"। और यहाँ कहा कि आज अपना पुरस्कार पूरा कर
दिया। यह आयत ह़ज्जतुल वदाअ में अरफ़ा के दिन अरफ़ात में उतरी। (सह़ीह
बुखारीः4606) जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अन्तिम ह़ज्ज था, जिस के
लग-भग तीन महीने बाद आप संसार से चले गये।
التفاسير العربية:
يَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَآ أُحِلَّ لَهُمۡۖ قُلۡ
أُحِلَّ لَكُمُ ٱلطَّيِّبَٰتُ وَمَا عَلَّمۡتُم مِّنَ ٱلۡجَوَارِحِ
مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ ٱللَّهُۖ فَكُلُواْ
مِمَّآ أَمۡسَكۡنَ عَلَيۡكُمۡ وَٱذۡكُرُواْ ٱسۡمَ ٱللَّهِ عَلَيۡهِۖ
وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ
वे आपसे प्रश्न करते हैं कि
उनके लिए क्या ह़लाल (वैध) किया गया? आप कह दें कि सभी स्वच्छ पवित्र चीजें
तुम्हारे लिए ह़लाल कर दी गयी हैं। और उन शिकारी जानवरों का शिकार जिन्हें
तुमने उस ज्ञान द्वारा जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है, उसमें से कुछ सिखाकर
सधाया हो। तो जो (शिकार) वह तुमपर रोक दें उसमें से खाओ और उसपर अल्लाह का
नाम[1] लो तथा अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह, अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने
वाला है।
1. अर्थात सधाये हुये कुत्ते और बाज़-शिक़रे आदि
का शिकार। उन के शिकार के उचित होने के लिये निम्नलिखित दो बातें आवश्यक
हैं- 1. उसे बिस्मिल्लाह कह कर छोड़ा गया हो। इसी प्रकार शिकार जीवित हो तो
बिस्मिल्लाह कह के वध किया जाये। 2. उस ने शिकार में से कुछ खाया न हो।
(बुख़ारीः5478, मुस्लिमः1930)
التفاسير العربية:
ٱلۡيَوۡمَ أُحِلَّ لَكُمُ ٱلطَّيِّبَٰتُۖ
وَطَعَامُ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ حِلّٞ لَّكُمۡ وَطَعَامُكُمۡ
حِلّٞ لَّهُمۡۖ وَٱلۡمُحۡصَنَٰتُ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ وَٱلۡمُحۡصَنَٰتُ
مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلِكُمۡ إِذَآ
ءَاتَيۡتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحۡصِنِينَ غَيۡرَ مُسَٰفِحِينَ وَلَا
مُتَّخِذِيٓ أَخۡدَانٖۗ وَمَن يَكۡفُرۡ بِٱلۡإِيمَٰنِ فَقَدۡ حَبِطَ
عَمَلُهُۥ وَهُوَ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
आज सब स्वच्छ खाद्य तुम्हारे
लिए ह़लाल (वैध) कर दिये गये हैं, और जिन्हें किताब दी गई उनका भोजन भी
तुम्हारे लिए हलाल है और तुम्हारा भोजन उनके लिए हलाल है और ईमान वाली
सतवंती स्त्रियाँ तथा उनमें से सतवंती स्त्रियाँ, जो तुमसे पहले पुस्तक
दिये गये हैं, जबकि उन्हें उनका महर (विवाह उपहार) चुका दो, विवाह में लाने
के लिए, व्यभिचार के लिए नहीं और न प्रेमिका बनाने के लिए। जो ईमान को
नकार देगा, उसका सत्कर्म व्यर्थ हो जायेगा तथा परलोक में वह विनाशों में
होगा।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا
قُمۡتُمۡ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ فَٱغۡسِلُواْ وُجُوهَكُمۡ وَأَيۡدِيَكُمۡ إِلَى
ٱلۡمَرَافِقِ وَٱمۡسَحُواْ بِرُءُوسِكُمۡ وَأَرۡجُلَكُمۡ إِلَى
ٱلۡكَعۡبَيۡنِۚ وَإِن كُنتُمۡ جُنُبٗا فَٱطَّهَّرُواْۚ وَإِن كُنتُم
مَّرۡضَىٰٓ أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوۡ جَآءَ أَحَدٞ مِّنكُم مِّنَ
ٱلۡغَآئِطِ أَوۡ لَٰمَسۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمۡ تَجِدُواْ مَآءٗ
فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدٗا طَيِّبٗا فَٱمۡسَحُواْ بِوُجُوهِكُمۡ وَأَيۡدِيكُم
مِّنۡهُۚ مَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيَجۡعَلَ عَلَيۡكُم مِّنۡ حَرَجٖ وَلَٰكِن
يُرِيدُ لِيُطَهِّرَكُمۡ وَلِيُتِمَّ نِعۡمَتَهُۥ عَلَيۡكُمۡ لَعَلَّكُمۡ
تَشۡكُرُونَ
हे ईमान वालो! जब नमाज़ के लिए
खड़े हो, तो (पहले) अपने मुँह तथा हाथों को कुहनियों तक धो लो और अपने
सिरों का मसह़[1] कर लो तथा अपने पावों को टखनों तक (धो लो) और यदि
जनाबत[2] की स्थिति में हो, तो (स्नान करके) पवित्र हो जाओ तथा यदि रोगी
अथवा यात्रा में हो अथवा तुममें से कोई शोच से आये अथवा तुमने स्त्रियों को
स्पर्श किया हो और तुम जल न पाओ, तो शुध्द धूल से तयम्मुम कर लो और उससे
अपने मुखों तथा हाथों का मसह़[3] कर लो। अल्लाह तुम्हारे लिए कोई संकीर्णता
(तंगी) नहीं चाहता। परन्तु तुम्हें पवित्र करना चाहता है और ताकि तुमपर
अपना पुरस्कार पूरा कर दे और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
1. मसह़ का अर्थ है, दोनों हाथ भिगो कर सिर पर
फेरना। 2. जनाबत से अभिप्राय वह मलिनता है, जो स्वप्नदोष तथा स्त्री संभोग
से होती है। यही आदेश मासिक धर्म तथा प्रसव का भी है। 3. ह़दीस में है कि
एक यात्रा में आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा का हार खो गया, जिस के लिये बैदा के
स्थान पर रुकना पड़ा। भोर की नमाज़ के वुज़ु के लिये पानी नहीं मिल सका और
यह आयत उतरी। (देखियेः सह़ीह़ बुख़ारीः4607) मसह़ का अर्थ हाथ फेरना है।
तयम्मुम के लिये देखिये सूरह निसा, आयतः43)
التفاسير العربية:
وَٱذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ
وَمِيثَٰقَهُ ٱلَّذِي وَاثَقَكُم بِهِۦٓ إِذۡ قُلۡتُمۡ سَمِعۡنَا
وَأَطَعۡنَاۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِذَاتِ
ٱلصُّدُورِ
तथा अपने ऊपर अल्लाह के
पुरस्कार और उस दृढ़ वचन को याद करो, जो तुमसे लिया है। जब तुमने कहाः हमने
सुन लिया और आज्ञाकारी हो गये तथा (सुनो!) अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह
अल्लाह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُونُواْ
قَوَّـٰمِينَ لِلَّهِ شُهَدَآءَ بِٱلۡقِسۡطِۖ وَلَا يَجۡرِمَنَّكُمۡ
شَنَـَٔانُ قَوۡمٍ عَلَىٰٓ أَلَّا تَعۡدِلُواْۚ ٱعۡدِلُواْ هُوَ أَقۡرَبُ
لِلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرُۢ بِمَا
تَعۡمَلُونَ
हे ईमान वालो! अल्लाह के लिए
खड़े रहने वाले, न्याय के साथ साक्ष्य देने वाले रहो तथा किसी गिरोह की
शत्रुता तुम्हें इसपर न उभार दे कि न्याय न करो। वह (अर्थातः सबके साथ
न्याय) अल्लाह से डरने के अधिक समीप[1] है। निःसंदेह तुम जो कुछ करते हो,
अल्लाह उससे भली-भाँति सूचित है।
1. ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
ने कहाः जो न्याय करते हैं, वे अल्लाह के पास नूर (प्रकाश) के मंच पर उस के
दायें ओर रहेंगे, - और उस के दोनों हाथ दायें हैं- जो अपने आदेश तथा अपने
परिजनों और जो उन के अधिकार में हो, में न्याय करते हैं। (सह़ीह़
मुस्लिमः1827)
التفاسير العربية:
وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ
ٱلصَّـٰلِحَٰتِ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٌ عَظِيمٞ
जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उनसे अल्लाह का वचन है कि उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
التفاسير العربية:
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ
بِـَٔايَٰتِنَآ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَحِيمِ
तथा जो काफ़िर रहे और हमारी आयतों को मिथ्या कहा, तो वही लोग नारकी हैं।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱذۡكُرُواْ
نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ هَمَّ قَوۡمٌ أَن يَبۡسُطُوٓاْ
إِلَيۡكُمۡ أَيۡدِيَهُمۡ فَكَفَّ أَيۡدِيَهُمۡ عَنكُمۡۖ وَٱتَّقُواْ
ٱللَّهَۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
हे ईमान वालो! अल्लाह के उस
उपकार को याद करो, जब एक गिरोह ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाना[1] चाहा, तो
अल्लाह ने उनके हाथों को तुमसे रोक दिया तथा अल्लाह से डरते रहो और ईमान
वालों को अल्लाह ही पर निरभर करना चाहिए।
1. अर्थात तुम पर आक्रमण करने का निश्चय किया तो
अल्लाह ने उन के आक्रमण से तुम्हारी रक्षा की। इस आयत से संबंधित बुख़ारी
में सह़ीह़ ह़दीस आती है कि एक युध्द में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
एकांत में एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे कि एक व्यक्ति आया और आप की
तलवार खींच कर कहाः तुम को अब मुझ से कौन बचायेगा? आप ने कहाः अल्लाह! यह
सुनते ही तलवार उस के हाथ से गिर गई और आप ने उसे क्षमा कर दिया। (सह़ीह़
बुख़ारीः4139)
التفاسير العربية:
۞وَلَقَدۡ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَٰقَ بَنِيٓ
إِسۡرَـٰٓءِيلَ وَبَعَثۡنَا مِنۡهُمُ ٱثۡنَيۡ عَشَرَ نَقِيبٗاۖ وَقَالَ
ٱللَّهُ إِنِّي مَعَكُمۡۖ لَئِنۡ أَقَمۡتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَيۡتُمُ
ٱلزَّكَوٰةَ وَءَامَنتُم بِرُسُلِي وَعَزَّرۡتُمُوهُمۡ وَأَقۡرَضۡتُمُ
ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنٗا لَّأُكَفِّرَنَّ عَنكُمۡ سَيِّـَٔاتِكُمۡ
وَلَأُدۡخِلَنَّكُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۚ فَمَن
كَفَرَ بَعۡدَ ذَٰلِكَ مِنكُمۡ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَآءَ ٱلسَّبِيلِ
तथा अल्लाह ने बनी इस्राईल से
(भी) दृढ़ वचन लिया था और उनमें बारह प्रमुख नियुक्त कर दिये थे तथा अल्लाह
ने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुम नमाज की स्थापना करते रहे,
ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान (विश्वास) रखे रहे, उन्हें समर्थन
देते रहे तथा अल्लाह को उत्तम ऋण देते रहे। (अगर ऐसा हुआ) तो मैं अवश्य
तुम्हें तुम्हारे पाप क्षमा कर दूँगा और तुम्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश
दूँगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी और तुममें से जो इसके पश्चात् भी
कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, (दरअसल) वह सुपथ[1] से विचलित हो गया।
1. अल्लाह को ऋण देने का अर्थ उस के लिये दान करना
है। इस आयत में ईमान वालों को सावधान किया गया है कि तुम अह्ले किताबः
यहूद और नसारा जैसे न हो जाना जो अल्लाह के वचन को भंग कर के उस की धिक्कार
के अधिकारी बन गये। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
فَبِمَا نَقۡضِهِم مِّيثَٰقَهُمۡ لَعَنَّـٰهُمۡ
وَجَعَلۡنَا قُلُوبَهُمۡ قَٰسِيَةٗۖ يُحَرِّفُونَ ٱلۡكَلِمَ عَن
مَّوَاضِعِهِۦ وَنَسُواْ حَظّٗا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِۦۚ وَلَا تَزَالُ
تَطَّلِعُ عَلَىٰ خَآئِنَةٖ مِّنۡهُمۡ إِلَّا قَلِيلٗا مِّنۡهُمۡۖ فَٱعۡفُ
عَنۡهُمۡ وَٱصۡفَحۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
तो उनके अपना वचन भंग करने के
कारण, हमने उन्हें धिक्कार दिया और उनके दिलों को कड़ा कर दिया। वे अल्लाह
की बातों को, उनके वास्तविक स्थानों से फेर देते[1] हैं तथा जिस बात का
उन्हें निर्देश दिया गया था, उसे भुला दिया और (अब) आप बराबर उनके किसी न
किसी विश्वासघात से सूचित होते रहेंगे, परन्तु उनमें बहुत थोड़े के सिवा,
जो ऐसा नहीं करते। अतः आप उन्हें क्षमा कर दें और उन्हें जाने दें।
निःसंदेह अल्लाह उपकारियों से प्रेम करता है।
1. सह़ीह़ ह़दीस में आया है कि कुछ यहूदी,
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक नर और नारी को लाये जिन्हों
ने व्यभिचार किया था, आप ने कहाः तुम तौरात में क्या पाते हो? उन्हों ने
कहाः उन का अपमान करें और कोड़े मारें। अब्दुल्लाह बिन सलाम ने कहाः तुम
झूठे हो, बल्कि उस में (रज्म) करने का आदेश है। तौरात लाओ। वह तौरात लाये
तो एक ने रज्म की आयत पर हाथ रख दिया और आगे-पीछे पढ़ दिया। अब्दुल्लाह बिन
सलाम ने कहाः हाथ उठाओ। उस ने हाथ उठाया तो उस में रज्म की आयत थी।
(सह़ीह़ बुख़ारीः3559, सह़ीह़ मुस्लिमः1699)
التفاسير العربية:
وَمِنَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّا نَصَٰرَىٰٓ
أَخَذۡنَا مِيثَٰقَهُمۡ فَنَسُواْ حَظّٗا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِۦ
فَأَغۡرَيۡنَا بَيۡنَهُمُ ٱلۡعَدَاوَةَ وَٱلۡبَغۡضَآءَ إِلَىٰ يَوۡمِ
ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَسَوۡفَ يُنَبِّئُهُمُ ٱللَّهُ بِمَا كَانُواْ يَصۡنَعُونَ
तथा जिन्होंने कहा कि हम नसारा
(ईसाई) हैं, हमने उनसे (भी) दृढ़ वचन लिया था, तो उन्हें जिस बात का
निर्देश दिया गया था, उसे भुला बैठे, तो प्रलय के दिन तक के लिए हमने उनके
बीच शत्रुता तथा पारस्परिक (आपसी) विद्वेष भड़का दिया और शीघ्र ही अल्लाह
जो कुछ वे करते रहे हैं, उन्हें[1] बता देगा।
1. आयत का अर्थ यह है कि जब ईसाईयों ने वचन भंग कर
दिया, तो उन में कई परस्पर विरोधी सम्प्रदाय हो गये, जैसे याक़ूबिय्यः,
नसतूरिय्यःऔर आरयूसिय्यः। ये सभी एक दूसरे के शत्रु हो गये। तथा इस समय
आर्थिक और राजनीतिक सम्प्रदायों में विभाजित हो कर आपस में रक्तपात कर रहे
हैं। इस में मुसलमानों को भी सावधान किया गया है कि क़ुर्आन के अर्थों में
परिवर्तन कर के ईसाईयों के समान सम्प्रदायों में विभाजित न होना।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ قَدۡ جَآءَكُمۡ
رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمۡ كَثِيرٗا مِّمَّا كُنتُمۡ تُخۡفُونَ مِنَ
ٱلۡكِتَٰبِ وَيَعۡفُواْ عَن كَثِيرٖۚ قَدۡ جَآءَكُم مِّنَ ٱللَّهِ نُورٞ
وَكِتَٰبٞ مُّبِينٞ
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास
हमारे रसूल आ गये हैं[1], जो तुम्हारे लिए उन बहुत सी बातों को उजागर कर
रहे हैं, जिन्हें तुम छुपा रहे थे और बहुत सी बातों को छोड़ भी रहे हैं। अब
तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश तथा खुली पुस्तक (कुर्आन) आ गई है।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। तथा प्रकाश से अभिप्राय क़ुर्आन पाक है।
التفاسير العربية:
يَهۡدِي بِهِ ٱللَّهُ مَنِ ٱتَّبَعَ رِضۡوَٰنَهُۥ
سُبُلَ ٱلسَّلَٰمِ وَيُخۡرِجُهُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ
بِإِذۡنِهِۦ وَيَهۡدِيهِمۡ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ
जिसके द्वारा अल्लाह उन्हें
शान्ति का मार्ग दिखा रहा है, जो उसकी प्रसन्नता पर चलते हों, उन्हें अपनी
अनुमति से अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है और उन्हें सुपथ
दिखाता है।
التفاسير العربية:
لَّقَدۡ كَفَرَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ
هُوَ ٱلۡمَسِيحُ ٱبۡنُ مَرۡيَمَۚ قُلۡ فَمَن يَمۡلِكُ مِنَ ٱللَّهِ
شَيۡـًٔا إِنۡ أَرَادَ أَن يُهۡلِكَ ٱلۡمَسِيحَ ٱبۡنَ مَرۡيَمَ وَأُمَّهُۥ
وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗاۗ وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ
وَمَا بَيۡنَهُمَاۚ يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ
قَدِيرٞ
निश्चय वे काफ़िर[1] हो गये,
जिन्होंने कहा कि मर्यम का पुत्र मसीह़ ही अल्लाह है। (हे नबी!) उनसे कह दो
कि यदि अल्ललाह मर्यम के पुत्र और उसकी माता तथा जो भी धरती में है, सबका
विनाश कर देना चाहे, तो किसमें शक्ति है कि वह उसे रोक दे? तथा आकाश और
धरती और जो भी इनके बीच है, सब अल्लाह ही का राज्य है, वह जो चाहे, उतपन्न
करता है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
1. इस आयत में ईसा अलैहिस्सलाम के अल्लाह होने की
मिथ्या आस्था का खण्डन किया जा रहा है।
التفاسير العربية:
وَقَالَتِ ٱلۡيَهُودُ وَٱلنَّصَٰرَىٰ نَحۡنُ
أَبۡنَـٰٓؤُاْ ٱللَّهِ وَأَحِبَّـٰٓؤُهُۥۚ قُلۡ فَلِمَ يُعَذِّبُكُم
بِذُنُوبِكُمۖ بَلۡ أَنتُم بَشَرٞ مِّمَّنۡ خَلَقَۚ يَغۡفِرُ لِمَن
يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۚ وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ
وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَاۖ وَإِلَيۡهِ ٱلۡمَصِيرُ
तथा यहूदी और ईसाईयों ने कहा कि
हम अल्लाह के पुत्र तथा प्रियवर हैं। आप पूछें कि फिर वह तुम्हें तुम्हारे
पापों का दण्ड क्यों देता है? बल्कि तुमभी वैसे ही मानव पूरुष हो, जैसे
दूसरे हैं, जिनकी उत्पत्ति उसने की है। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे
चाहे, दण्ड दे तथा आकाश और धरती तथा जो उन दोनों के बीच है, अल्लाह ही का
राज्य (अधिपत्य)[1] है और उसी की ओर सबको जाना है।
1. इस आयत में ईसाईयों तथा यहूदियों के इस भ्रम का
खण्डन किया जा रहा है कि वह अल्लाह के प्रियवर हैं, इस लिये जो भी करें,
उन के लिये मुक्ति ही मुक्ति है।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ قَدۡ جَآءَكُمۡ
رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمۡ عَلَىٰ فَتۡرَةٖ مِّنَ ٱلرُّسُلِ أَن
تَقُولُواْ مَا جَآءَنَا مِنۢ بَشِيرٖ وَلَا نَذِيرٖۖ فَقَدۡ جَآءَكُم
بَشِيرٞ وَنَذِيرٞۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास
रसुलों के आने का क्रम बंद होने के पश्चात्, हमारे रसूल आ गये[1] हैं, वह
तुम्हारे लिए (सत्य को) उजागर कर रहे हैं, ताकि तुम ये न कहो कि हमारे पास
कोई शुभ सूचना सुनाने वाला तथा सावधान करने वाला (नबी) नहीं आया, तो
तुम्हारे पास शुभ सूचना सुनाने तथा सावधान करने वाला आ गया है तथा अल्लाह
जो चाहे, कर सकता है।
1. अंतिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम,
ईसा अलैहिस्सलाम के छः सौ वर्ष पश्चात् 610 ईस्वी में नबी हुये। आप के और
ईसा अलैहिस्सलाम के बीच कोई नबी नहीं आया।
التفاسير العربية:
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ يَٰقَوۡمِ
ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ جَعَلَ فِيكُمۡ أَنۢبِيَآءَ
وَجَعَلَكُم مُّلُوكٗا وَءَاتَىٰكُم مَّا لَمۡ يُؤۡتِ أَحَدٗا مِّنَ
ٱلۡعَٰلَمِينَ
तथा याद करो, जब मूसा ने अपनी
जाति से कहाः हे मेरी जाति! अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को याद करो कि
उसने तुममें नबी और शासक बनाये तथा तुम्हें वह कुछ दिया, जो संसार वासियों
में किसी को नहीं दिया।
التفاسير العربية:
يَٰقَوۡمِ ٱدۡخُلُواْ ٱلۡأَرۡضَ ٱلۡمُقَدَّسَةَ
ٱلَّتِي كَتَبَ ٱللَّهُ لَكُمۡ وَلَا تَرۡتَدُّواْ عَلَىٰٓ أَدۡبَارِكُمۡ
فَتَنقَلِبُواْ خَٰسِرِينَ
हे मेरी जाति! उस पवित्र धरती
(बैतुल मक़्दिस) में प्रवेश कर जाओ, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया
है और पीछे न फिरो, अन्यथा असफल हो जाओगे।
التفاسير العربية:
قَالُواْ يَٰمُوسَىٰٓ إِنَّ فِيهَا قَوۡمٗا
جَبَّارِينَ وَإِنَّا لَن نَّدۡخُلَهَا حَتَّىٰ يَخۡرُجُواْ مِنۡهَا فَإِن
يَخۡرُجُواْ مِنۡهَا فَإِنَّا دَٰخِلُونَ
उन्होंने कहाः हे मूसा! उसमें
बड़े बलवान लोग हैं और हम उसमें कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उससे
निकल न जायें, यदि वे निकल जाते हैं, तभी हम उसमें प्रवेश कर सकते हैं।
التفاسير العربية:
قَالَ رَجُلَانِ مِنَ ٱلَّذِينَ يَخَافُونَ
أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمَا ٱدۡخُلُواْ عَلَيۡهِمُ ٱلۡبَابَ فَإِذَا
دَخَلۡتُمُوهُ فَإِنَّكُمۡ غَٰلِبُونَۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَتَوَكَّلُوٓاْ
إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
उनमें से दो व्यक्तियों ने, जो
(अल्लाह से) डरते थे, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया था, कहा कि उनपर द्वार
से प्रवेश कर जाओ, जबतुम उसमें प्रवेश कर जाओगे, तो निश्चय तुम
प्रभुत्वशाली होगे तथा अल्लाह ही पर भरोसा करो, यदि तुम ईमान वाले हो।
التفاسير العربية:
قَالُواْ يَٰمُوسَىٰٓ إِنَّا لَن نَّدۡخُلَهَآ
أَبَدٗا مَّا دَامُواْ فِيهَا فَٱذۡهَبۡ أَنتَ وَرَبُّكَ فَقَٰتِلَآ
إِنَّا هَٰهُنَا قَٰعِدُونَ
वे बोलेः हे मूसा! हम उसमें
कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उसमें (उपस्थित) रहेंगे, अतः तुम और
तुम्हारा पालनहार जाओ, फिर तुम दोनों युध्द करो, हम यहीं बैठे रहेंगे।
التفاسير العربية:
قَالَ رَبِّ إِنِّي لَآ أَمۡلِكُ إِلَّا نَفۡسِي
وَأَخِيۖ فَٱفۡرُقۡ بَيۡنَنَا وَبَيۡنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡفَٰسِقِينَ
(ये दशा देखकर) मूसा ने कहः हे
मेरे पालनहार! मैं अपने और अपने भाई के सिवा किसी पर कोई अधिकार नहीं रखता।
अतः तु हमारे तथा अवज्ञाकारी जाति के बीच निर्णय कर दे।
التفاسير العربية:
قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيۡهِمۡۛ
أَرۡبَعِينَ سَنَةٗۛ يَتِيهُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ فَلَا تَأۡسَ عَلَى
ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡفَٰسِقِينَ
अल्लाह ने कहाः वह (धरती) उनपर
चालीस वर्ष के लिए ह़राम (वर्जित) कर दी गई। वे धरती में फिरते रहेंगे, अतः
तुम अवज्ञाकारी जाति पर तरस न खाओ[1]।
1. इन आयतों का भावार्थ यह है कि जब मूसा
अलैहिस्सलाम बनी इस्राईल को ले कर मिस्र से निकले, तो अल्लाह ने उन्हें
बैतुल मक़्दिस में प्रवेश कर जाने का आदेश दिया, जिस पर अमालिक़ा जाति का
अधिकार था। और वही उस के शासक थे, परन्तु बनी इस्राईल ने जो कायर हो गये
थे, अमालिक़ा से युध्द करने का साहस नहीं किया। और इस आदेश का विरोध किया,
जिस के परिणाम स्वरूप उसी क्षेत्र में 40 वर्ष तक फिरते रहे। और जब 40 वर्ष
बीत गये, और एक नया वंश जो साहसी था पैदा हो गया, तो उस ने उस धरती पर
अधिकार कर लिया। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
۞وَٱتۡلُ عَلَيۡهِمۡ نَبَأَ ٱبۡنَيۡ ءَادَمَ
بِٱلۡحَقِّ إِذۡ قَرَّبَا قُرۡبَانٗا فَتُقُبِّلَ مِنۡ أَحَدِهِمَا وَلَمۡ
يُتَقَبَّلۡ مِنَ ٱلۡأٓخَرِ قَالَ لَأَقۡتُلَنَّكَۖ قَالَ إِنَّمَا
يَتَقَبَّلُ ٱللَّهُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِينَ
तथा उनेहें आदम के दो पुत्रों
का सही समाचार[1] सुना दो, जब दोनों ने एक उपायन (क़ुर्बानी) प्रस्तुत की,
तो एक से स्वीकार की गई तथा दूसरे से स्वीकार नहीं की गई। उस (दूसरे) ने
कहाः मैं अवश्य तेरी हत्या कर दूँगा। उस (प्रथम) ने कहाः अल्लाह आज्ञाकारों
ही से स्वीकार करता है।
1. भाष्यकारों ने इन दोनों के नाम क़ाबील और हाबील बताये हैं।
التفاسير العربية:
لَئِنۢ بَسَطتَ إِلَيَّ يَدَكَ لِتَقۡتُلَنِي مَآ
أَنَا۠ بِبَاسِطٖ يَدِيَ إِلَيۡكَ لِأَقۡتُلَكَۖ إِنِّيٓ أَخَافُ ٱللَّهَ
رَبَّ ٱلۡعَٰلَمِينَ
यदि तुम मेरी हत्या करने के लिए
मेरी ओर हाथ बढ़ाओगे[1], तो भी मैं तुम्हारी ओर तुम्हारी हत्या करने के
लिए हाथ बढ़ाने वाला नहीं हूँ। मैं विश्व के पालनहार अल्लाह से डरता हूँ।
1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः जो भी
प्राणी अत्याचार से मारा जाये तो आदम के प्रथम पुत्र पर उन के ख़ून का भाग
होता है, क्यों कि उसी ने प्रथम हत्या की रीति बनाई है। (सह़ीह़
बुख़ारीः6867, सह़ीह़ मुस्लिमः1677)
التفاسير العربية:
إِنِّيٓ أُرِيدُ أَن تَبُوٓأَ بِإِثۡمِي
وَإِثۡمِكَ فَتَكُونَ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلنَّارِۚ وَذَٰلِكَ جَزَـٰٓؤُاْ
ٱلظَّـٰلِمِينَ
मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी (हत्या के) पाप और अपने पाप के साथ फिरो और नारकी हो जाओ और यही अत्याचारियों का प्रतिकार (बदला) है।
التفاسير العربية:
فَطَوَّعَتۡ لَهُۥ نَفۡسُهُۥ قَتۡلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُۥ فَأَصۡبَحَ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
अंततः, उसने स्वयं को अपने भाई की हत्या पर तैयार कर लिया और विनाशों में हो गया।
التفاسير العربية:
فَبَعَثَ ٱللَّهُ غُرَابٗا يَبۡحَثُ فِي ٱلۡأَرۡضِ
لِيُرِيَهُۥ كَيۡفَ يُوَٰرِي سَوۡءَةَ أَخِيهِۚ قَالَ يَٰوَيۡلَتَىٰٓ
أَعَجَزۡتُ أَنۡ أَكُونَ مِثۡلَ هَٰذَا ٱلۡغُرَابِ فَأُوَٰرِيَ سَوۡءَةَ
أَخِيۖ فَأَصۡبَحَ مِنَ ٱلنَّـٰدِمِينَ
फिर अल्लाह ने एक कौआ भेजा, जो
भूमि कुरेद रहा था, ताकि उसे दिखाये कि अपने भाई के शव को कैसे छुपाये,
उसने कहाः मुझपर खेद है! क्या मैं इस कौआ जैसा भी न हो सका कि अपने भाई का
शव छुपा सकूँ, फिर बड़ा लज्जित हूआ।
التفاسير العربية:
مِنۡ أَجۡلِ ذَٰلِكَ كَتَبۡنَا عَلَىٰ بَنِيٓ
إِسۡرَـٰٓءِيلَ أَنَّهُۥ مَن قَتَلَ نَفۡسَۢا بِغَيۡرِ نَفۡسٍ أَوۡ فَسَادٖ
فِي ٱلۡأَرۡضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ ٱلنَّاسَ جَمِيعٗا وَمَنۡ أَحۡيَاهَا
فَكَأَنَّمَآ أَحۡيَا ٱلنَّاسَ جَمِيعٗاۚ وَلَقَدۡ جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُنَا
بِٱلۡبَيِّنَٰتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرٗا مِّنۡهُم بَعۡدَ ذَٰلِكَ فِي
ٱلۡأَرۡضِ لَمُسۡرِفُونَ
इसी कारण हमने बनी इस्राईल पर
लिख दिया[1] कि जिसने भी किसी प्राणी की हत्या की, किसी प्राणी का ख़ून
करने अथवा धरती में विद्रोह के बिना, तो समझो उसने पूरे मनुष्यों की
हत्या[2] कर दी और जिसने जीवित रखा एक प्राणी को, तो वास्तव में, उसने
जीवित रखा सभी मनुष्यों को तथा उनके पास हमारे रसूल खुली निशानियाँ लाये,
फिर भी उनमें से अधिकांश धरती में विद्रोह करने वाले हैं।
1. अर्थात नियम बना दिया। इस्लाम में भी यही नियम
और आदेश है। 2. क्यों कि सभी प्राण, प्राण होने में बराबर हैं।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا جَزَـٰٓؤُاْ ٱلَّذِينَ يُحَارِبُونَ
ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَيَسۡعَوۡنَ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَسَادًا أَن
يُقَتَّلُوٓاْ أَوۡ يُصَلَّبُوٓاْ أَوۡ تُقَطَّعَ أَيۡدِيهِمۡ
وَأَرۡجُلُهُم مِّنۡ خِلَٰفٍ أَوۡ يُنفَوۡاْ مِنَ ٱلۡأَرۡضِۚ ذَٰلِكَ
لَهُمۡ خِزۡيٞ فِي ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
जो लोग[1] अल्लाह और उसके रसूल
से युध्द करते हों तथा धरती में उपद्रव करते फिर रहे हों, उनका दण्ड ये है
कि उनकी हत्या की जाये तथा उन्हें फाँसी दी जाये अथवा उनके हाथ-पाँव विपरीत
दिशाओं से काट दिये जायें अथवा उन्हें देश निकाला दे दिया जाये। ये उनके
लिए संसार में अपमान है तथा परलोक में उनके लिए इससे बड़ा दण्ड है।
التفاسير العربية:
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ مِن قَبۡلِ أَن
تَقۡدِرُواْ عَلَيۡهِمۡۖ فَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
परन्तु जो तौबा (क्षमा याचना)
कर लें, इससे पहले कि तुम उन्हें अपने नियंत्रण में लाओ, तो तुम जान लो कि
अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ
ٱللَّهَ وَٱبۡتَغُوٓاْ إِلَيۡهِ ٱلۡوَسِيلَةَ وَجَٰهِدُواْ فِي سَبِيلِهِۦ
لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ
हे ईमान वालो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो और उसकी ओर वसीला[1] खोजो तथा उसकी राह में जिहाद करो, ताकी तुम सफल हो जाओ।
1. "वसीला" का अर्थ हैः अल्लाह की आज्ञा का पालन
करने और उस की अवज्ञा से बचने तथा ऐसे कर्मों के करने का, जिन से वह
प्रसन्न हो। वसीला ह़दीस में स्वर्ग के उस सर्वोच्च स्थान को भी कहा गया
है, जो स्वर्ग में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मिलेगा, जिस का नाम
"मक़ामे मह़मूद" है। इसी लिये आप ने कहाः जो अज़ान के पश्चात् मेरे लिये
वसीला की दुआ करेगा, वह मेरी सिफारिश के योग्य होगा। (बुख़ारीः4719) पीरों
और फ़क़ीरों आदि की समाधियों को वसीला समझना निर्मूल और शिर्क है।
التفاسير العربية:
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡ أَنَّ لَهُم مَّا
فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لِيَفۡتَدُواْ بِهِۦ مِنۡ
عَذَابِ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنۡهُمۡۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ
أَلِيمٞ
जो लोग काफ़िर हैं, यद्यपि धरती
के सभी (धन-धान्य) उनके अधिकार (स्वामित्व) में आ जायें और उसी के समान और
भी हो, ताकि वे, ये सब प्रलय के दिन की यातना से अर्थ दण्ड स्वरूप देकर
मुक्त हो जायें, तो भी उनसे स्वीकार नहीं किया जायेगा और उन्हें दुखदायी
यातना होगी।
التفاسير العربية:
يُرِيدُونَ أَن يَخۡرُجُواْ مِنَ ٱلنَّارِ وَمَا
هُم بِخَٰرِجِينَ مِنۡهَاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ مُّقِيمٞ
वे चाहेंगे कि नरक से निकल जायें, जबकि वे उससे निकल नहीं सकेंगे और उन्हीं के लिए स्थायी यातना है।
التفاسير العربية:
وَٱلسَّارِقُ وَٱلسَّارِقَةُ فَٱقۡطَعُوٓاْ
أَيۡدِيَهُمَا جَزَآءَۢ بِمَا كَسَبَا نَكَٰلٗا مِّنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ
عَزِيزٌ حَكِيمٞ
चोर, पुरुष और स्त्री दोनों के
हाथ काट दो, उनके करतूत के बदले, जो अल्लाह की ओर से शिक्षाप्रद दण्ड है[1]
और अल्लाह प्रभावशाली गुणी है।
1. यहाँ पर चोरी के विषय में इस्लाम का धर्म विधान
वर्णित किया जा रहा है कि यदि चौथाई दीनार अथवा उस के मूल्य के समान की
चोरी की जाये, तो चोर का सीधा हाथ कलाई से काट दो। इस के लिये स्थान तथा
समय के और भी प्रतिबंध हैं। शिक्षाप्रद दण्ड होने का अर्थ यह है कि दूसरे
इस से शिक्षा ग्रहण करें, ताकि पूरा देश और समाज चोरी के अपराध से स्वच्छ
और पवित्र हो जाये। तथा यह ऐतिहासिक सत्य है कि इस घोर दण्ड के कारण,
इस्लाम के चौदह सौ वर्षों में जिन्हें यह दण्ड दिया गया है, वह बहुत कम
हैं। क्यों कि यह सज़ा ही ऐसी है कि जहाँ भी इस को लागू किया जायेगा, वहाँ
चोर और डाकू बहुत कुछ सोच समझ कर ही आगे क़दम बढ़ायेंगे। जिस के फल स्वरूप
पूरा समाज अम्न और चैन का गहवारा बन जायेगा। इस के विपरीत संसार के आधुनिक
विधानों ने अपराधियों को सुधारने तथा उन्हें सभ्य बनाने का जो नियम बनाया
है, उस ने अपराधियों में अपराध का साहस बढ़ा दिया है। अतः यह मानना पड़ेगा
कि इस्लाम का ये दण्ड चोरी जैसे अपराध को रोकने में अब तक सब से सफल सिध्द
हुआ है। और यह दण्ड मानवता के मान और उस के अधिकार के विपरीत नहीं है।
क्यों कि जिस व्यक्ति ने अपना माल अपने खून-पसीना, परिश्रम तथा अपने हाथों
की शक्ति से कमाया है, तो यदि कोई चोर आ कर उस को उचकना चाहे तो उस की सज़ा
यही होनी चाहिये कि उस का हाथ ही काट दिया जाये, जिस से वह अन्य का माल
हड़प करना चाह रहा है।
التفاسير العربية:
فَمَن تَابَ مِنۢ بَعۡدِ ظُلۡمِهِۦ وَأَصۡلَحَ
فَإِنَّ ٱللَّهَ يَتُوبُ عَلَيۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
फिर जो अपने अत्याचार (चोरी) के
पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर ले और अपने को सुधार ले, तो अल्लाह उसकी
तौबा स्वीकार कर लेगा[1]। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
1. अर्थात उसे परलोक में दण्ड नहीं देगा, परन्तु
न्यायालय उसे चोरी सिध्द होने पर चोरी का दण्ड देगा। (तफसीरे क़ुर्तुबी)
التفاسير العربية:
أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلۡكُ
ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ يُعَذِّبُ مَن يَشَآءُ وَيَغۡفِرُ لِمَن
يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
क्या तुम जानते नहीं कि अल्लाह
ही के लिए है, आकाशों तथा धरती का राज्य। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और
जिसे चाहे, दण्ड दे तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
التفاسير العربية:
۞يَـٰٓأَيُّهَا ٱلرَّسُولُ لَا يَحۡزُنكَ
ٱلَّذِينَ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡكُفۡرِ مِنَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا
بِأَفۡوَٰهِهِمۡ وَلَمۡ تُؤۡمِن قُلُوبُهُمۡۛ وَمِنَ ٱلَّذِينَ هَادُواْۛ
سَمَّـٰعُونَ لِلۡكَذِبِ سَمَّـٰعُونَ لِقَوۡمٍ ءَاخَرِينَ لَمۡ يَأۡتُوكَۖ
يُحَرِّفُونَ ٱلۡكَلِمَ مِنۢ بَعۡدِ مَوَاضِعِهِۦۖ يَقُولُونَ إِنۡ
أُوتِيتُمۡ هَٰذَا فَخُذُوهُ وَإِن لَّمۡ تُؤۡتَوۡهُ فَٱحۡذَرُواْۚ وَمَن
يُرِدِ ٱللَّهُ فِتۡنَتَهُۥ فَلَن تَمۡلِكَ لَهُۥ مِنَ ٱللَّهِ شَيۡـًٔاۚ
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَمۡ يُرِدِ ٱللَّهُ أَن يُطَهِّرَ قُلُوبَهُمۡۚ
لَهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا خِزۡيٞۖ وَلَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٞ
हे नबी! वे आपको उदासीन न करें,
जो कुफ़्र में तीव्र गामी हैं; उनमें से जिन्होंने कहा कि हम ईमान लाये,
जबकि उनके दिल ईमान नहीं लाये और उनमें से जो यहूदी हैं, जिनकी दशा ये है
कि मिथ्या बातें सुनने के लिए कान लगाये रहते हैं तथा दूसरों के लिए, जो
आपके पास नहीं आये, कान लगाये रहते हैं। वे शब्दों को उनके निश्चित स्थानों
के पश्चात् वास्तविक अर्थों से फेर देते हैं। वे कहते हैं कि यदि तुम्हें
यही आदेश दिया जाये (जो हमने बताया है) तो मान लो और यदि वह न दिये जाओ, तो
उससे बचो। (हे नबी!) जिसे अल्लाह अपनी परीक्षा में डालना चाहे, आप उसे
अल्लाह से बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते। यही वे हैं, जिनके दिलों को
अल्लाह ने पवित्र करना नहीं चाहा। उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और
उन्हीं के लिए परलोक में घोर[1] यातना है।
1. मदीना के यहूदी विद्वान, मुनाफ़िक़ों
(द्विधावादियों) को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास भेजते कि आप की
बातें सुनें, और उन्हें सूचित करें। तथा अपने विवाद आप के पास ले जायें और
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कोई निर्णय करें तो हमारे आदेशानुसार हो तो
स्वीकार करें, अन्यथा स्वीकार न करें। जब कि तौरात की आयतों में इन के आदेश
थे, फिर भी वे उन में परिवर्तन कर के, उन का अर्थ कुछ का कुछ बना देते थे।
( देखिये व्याख्या आयतः13)
التفاسير العربية:
سَمَّـٰعُونَ لِلۡكَذِبِ أَكَّـٰلُونَ لِلسُّحۡتِۚ
فَإِن جَآءُوكَ فَٱحۡكُم بَيۡنَهُمۡ أَوۡ أَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡۖ وَإِن
تُعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ فَلَن يَضُرُّوكَ شَيۡـٔٗاۖ وَإِنۡ حَكَمۡتَ فَٱحۡكُم
بَيۡنَهُم بِٱلۡقِسۡطِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِينَ
वे मिथ्या बातें सुनने वाले,
अवैध भक्षी हैं। अतः यदि वे आपके पास आयें, तो आप उनके बीच निर्णय कर दें
अथवा उनसे मुँह फेर लें (आपको अधिकार है)। और यदि आप उनसे मुँह फेर लें, तो
वे आपको कोई हाणि नहीं पहुँचा सकेंगे और यदि निर्णय करें, तो न्याय के साथ
निर्णय करें। निःसंदेह अल्लाह न्यायकारियों से प्रेम करता है।
التفاسير العربية:
وَكَيۡفَ يُحَكِّمُونَكَ وَعِندَهُمُ
ٱلتَّوۡرَىٰةُ فِيهَا حُكۡمُ ٱللَّهِ ثُمَّ يَتَوَلَّوۡنَ مِنۢ بَعۡدِ
ذَٰلِكَۚ وَمَآ أُوْلَـٰٓئِكَ بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ
और वे आपको निर्णयकारी कैसे बना
सकते हैं, जबकि उनके पास तौरात (पुस्तक) मौजूद है, जिसमें अल्लाह का आदेश
है, फिर इसके पश्चात उससे मुँह फेर रहे हैं? वास्तव में, वे ईमान वाले हैं
ही[1] नहीं।
[1] क्यों कि वह न तो आप को नबी मानते, और न आप का
निर्णय मानते, तथा न तौरात का आदेश मानते हैं।
التفاسير العربية:
إِنَّآ أَنزَلۡنَا ٱلتَّوۡرَىٰةَ فِيهَا هُدٗى
وَنُورٞۚ يَحۡكُمُ بِهَا ٱلنَّبِيُّونَ ٱلَّذِينَ أَسۡلَمُواْ لِلَّذِينَ
هَادُواْ وَٱلرَّبَّـٰنِيُّونَ وَٱلۡأَحۡبَارُ بِمَا ٱسۡتُحۡفِظُواْ مِن
كِتَٰبِ ٱللَّهِ وَكَانُواْ عَلَيۡهِ شُهَدَآءَۚ فَلَا تَخۡشَوُاْ
ٱلنَّاسَ وَٱخۡشَوۡنِ وَلَا تَشۡتَرُواْ بِـَٔايَٰتِي ثَمَنٗا قَلِيلٗاۚ
وَمَن لَّمۡ يَحۡكُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ
ٱلۡكَٰفِرُونَ
निःसंदेह, हमने ही तौरात उतारी,
जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, जिसके अनुसार वो नबी निर्णय करते रहे,
जो आज्ञाकारी थे, उनके लिए जो यहूदी थे तथा धर्माचारी और विद्वान लोग,
क्योंकि वे अल्लाह की पुस्तक के रक्षक बनाये गये थे और उसके (सत्य होने के)
साक्षी थे। अतः, तुमभी लोगों से न डरो, मुझी से डरो और मेरी आयतों के बदले
तनिक मूल्य न खरीदो और जो अल्लाह की उतारी (पुस्तक के) अनुसार निर्णय न
करें, तो वही काफ़िर हैं।
التفاسير العربية:
وَكَتَبۡنَا عَلَيۡهِمۡ فِيهَآ أَنَّ ٱلنَّفۡسَ
بِٱلنَّفۡسِ وَٱلۡعَيۡنَ بِٱلۡعَيۡنِ وَٱلۡأَنفَ بِٱلۡأَنفِ وَٱلۡأُذُنَ
بِٱلۡأُذُنِ وَٱلسِّنَّ بِٱلسِّنِّ وَٱلۡجُرُوحَ قِصَاصٞۚ فَمَن تَصَدَّقَ
بِهِۦ فَهُوَ كَفَّارَةٞ لَّهُۥۚ وَمَن لَّمۡ يَحۡكُم بِمَآ أَنزَلَ
ٱللَّهُ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
और हमने उन (यहूदियों) पर उस
(तौरात) में लिख दिया कि प्राण के बदले प्राण, आँख के बदले आँख, नाक के
बदले नाक, कान के बदले कान और दाँत के बदले दाँत[1] हैं तथा सभी आघातों में
बराबरी का बदला है। फिर जो कोई बदला लेने को दान (क्षमा) कर दे, तो वह
उसके लिए (उसके पापों का) प्रायश्चित हो जायेगा तथा जो अल्लाह की उतारी
(पुस्तक के) अनुसार निर्णय न करें, वही अत्याचारी हैं।
1. इस्लाम में भी यही नियम है और नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम ने दाँत तोड़ने पर यही निर्णय दिया था। (सह़ीह़ बुखारीः4611)
التفاسير العربية:
وَقَفَّيۡنَا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم بِعِيسَى ٱبۡنِ
مَرۡيَمَ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ مِنَ ٱلتَّوۡرَىٰةِۖ
وَءَاتَيۡنَٰهُ ٱلۡإِنجِيلَ فِيهِ هُدٗى وَنُورٞ وَمُصَدِّقٗا لِّمَا
بَيۡنَ يَدَيۡهِ مِنَ ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَهُدٗى وَمَوۡعِظَةٗ لِّلۡمُتَّقِينَ
फिर हमने उन नबियों के पश्चात्
मर्यम के पुत्र ईसा को भेजा, उसे सच बताने वाला, जो उसके सामने तौरात थी
तथा उसे इंजील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, उसे सच बताने
वाली, जो उसके आगे तौरात थी तथा अल्लाह से डरने वालों के लिए सर्वथा
मार्गदर्शन तथा शिक्षा थी।
التفاسير العربية:
وَلۡيَحۡكُمۡ أَهۡلُ ٱلۡإِنجِيلِ بِمَآ أَنزَلَ
ٱللَّهُ فِيهِۚ وَمَن لَّمۡ يَحۡكُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ
فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡفَٰسِقُونَ
और इंजील के अनुयायी भी उसीसे
निर्णय करें, जो अल्लाह ने उसमें उतारा है और जो उससे निर्णय न करें, जिसे
अल्लाह ने उतारा है, वही अधर्मी हैं।
التفاسير العربية:
وَأَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ
مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَمُهَيۡمِنًا
عَلَيۡهِۖ فَٱحۡكُم بَيۡنَهُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُۖ وَلَا تَتَّبِعۡ
أَهۡوَآءَهُمۡ عَمَّا جَآءَكَ مِنَ ٱلۡحَقِّۚ لِكُلّٖ جَعَلۡنَا مِنكُمۡ
شِرۡعَةٗ وَمِنۡهَاجٗاۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَكُمۡ أُمَّةٗ
وَٰحِدَةٗ وَلَٰكِن لِّيَبۡلُوَكُمۡ فِي مَآ ءَاتَىٰكُمۡۖ فَٱسۡتَبِقُواْ
ٱلۡخَيۡرَٰتِۚ إِلَى ٱللَّهِ مَرۡجِعُكُمۡ جَمِيعٗا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا
كُنتُمۡ فِيهِ تَخۡتَلِفُونَ
और (हे नबी!) हमने आपकी ओर सत्य
पर आधारित पुस्तक (क़ुर्आन) उतार दी, जो अपने पूर्व की पुस्तकों को सच
बताने वाली तथा संरक्षक[1] है, अतः आप लोगों का निर्णय उसीसे करें, जो
अल्लाह ने उतारा है तथा उनकी मनमानी पर उस सत्य से विमुख होकर न चलें, जो
आपके पास आया है। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक धर्म विधान तथा एक
कार्य प्रणाली बना दिया[2] था और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें एक ही
समुदाय बना देता, परन्तु उसने जो कुछ दिया है, उसमें तुम्हारी परीक्षा लेना
चाहता है। अतः, भलाईयों में एक-दूसरे से अग्रसर होने का प्रयास करो[3],
अल्लाह ही की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिन
बातों में तुम विभेद करते रहे।
1. संरक्षक होने का अर्थ यह है कि क़ुर्आन अपने
पूर्व की धर्म पुस्तकों का केवल पुष्टिकर ही नहीं, कसौटि (परख) भी है। अतः
आदि पुस्तकों में जो भी बात क़ुर्आन के विरुध्द होगी, वह सत्य नहीं
परिवर्तित होगी, सत्य वही होगी जो अल्लाह की अन्तिम किताब क़ुरआन पाक के
अनुकूल है। 2. यहाँ यह प्रश्न उठता है कि जब तौरात तथा इंजील और क़ुर्आन सब
एक ही सत्य लाये हैं, तो फिर इन के धर्म विधानों तथा कार्य प्रणाली में
अन्तर क्यों है? क़ुर्आन उस का उत्तर देता है कि एक चीज़ मूल धर्म है,
अर्थात एकेश्वरवाद तथा सत्कर्म का नियम, और दूसरी चीज़ धर्म विधान तथा
कार्य प्रणाली है, जिस के अनुसार जीवन व्यतीत किया जाये, तो मूल धर्म तो एक
ही है, परन्तु समय और स्थितियों के अनुसार कार्य प्रणाली में अन्तर होता
रहा है, क्यों कि प्रत्येक युग की स्थितियाँ एक समान नहीं थीं, और यह मूल
धर्म का अन्तर नहीं, कार्य प्रणाली का अन्तर हुआ। अतः अब समय तथा
परिस्थतियाँ बदल जाने के पशचात् क़ुर्आन जो धर्म विधान तथा कार्य प्रणाली
परस्तुत कर रहा है, वही सत्धर्म है। 3. अर्थात क़ुर्आन के आदेशों का पालन
करने में।
التفاسير العربية:
وَأَنِ ٱحۡكُم بَيۡنَهُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ
وَلَا تَتَّبِعۡ أَهۡوَآءَهُمۡ وَٱحۡذَرۡهُمۡ أَن يَفۡتِنُوكَ عَنۢ بَعۡضِ
مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ إِلَيۡكَۖ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَٱعۡلَمۡ أَنَّمَا
يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُصِيبَهُم بِبَعۡضِ ذُنُوبِهِمۡۗ وَإِنَّ كَثِيرٗا
مِّنَ ٱلنَّاسِ لَفَٰسِقُونَ
तथा (हे नबी!) आप उनका निर्णय
उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी मनमानी पर न चलें तथा उनसे
सावधान रहें कि आपको जो अल्लाह ने आपकी ओर उतारा है, उसमें से कुछ से फेर न
दें। फिर यदि वे मुँह फेरें, तो जान लें कि अल्लाह चाहता है कि उनके कुछ
पापों के कारण उन्हें दण्ड दे। वास्तव में, बहुत-से लोग उल्लंघनकारी हैं।
التفاسير العربية:
أَفَحُكۡمَ ٱلۡجَٰهِلِيَّةِ يَبۡغُونَۚ وَمَنۡ
أَحۡسَنُ مِنَ ٱللَّهِ حُكۡمٗا لِّقَوۡمٖ يُوقِنُونَ
तो क्या वे जाहिलिय्यत (अंधकार
युग) का निर्णय चाहते हैं? और अल्लाह से अच्छा निर्णय किसका हो सकता है,
उनके लिए जो विश्वास रखते हैं?
التفاسير العربية:
۞يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا
تَتَّخِذُواْ ٱلۡيَهُودَ وَٱلنَّصَٰرَىٰٓ أَوۡلِيَآءَۘ بَعۡضُهُمۡ
أَوۡلِيَآءُ بَعۡضٖۚ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمۡ فَإِنَّهُۥ مِنۡهُمۡۗ
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
हे ईमान वालो! तुम यहूदी तथा
ईसाईयों को अपना मित्र न बनाओ, वे एक-दूसरे के मित्र हैं और जो कोई तुममें
से उन्हें मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में होगा तथा अल्लाह अत्याचारियों को
सीधी राह नहीं दिखाता।
التفاسير العربية:
فَتَرَى ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ
يُسَٰرِعُونَ فِيهِمۡ يَقُولُونَ نَخۡشَىٰٓ أَن تُصِيبَنَا دَآئِرَةٞۚ
فَعَسَى ٱللَّهُ أَن يَأۡتِيَ بِٱلۡفَتۡحِ أَوۡ أَمۡرٖ مِّنۡ عِندِهِۦ
فَيُصۡبِحُواْ عَلَىٰ مَآ أَسَرُّواْ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ نَٰدِمِينَ
फिर (हे नबी!) आप देखेंगे कि
जिनके दिलों में (द्विधा का) रोग है, वे उन्हीं में दौड़े जा रहे हैं, वे
कहते हैं कि हम डरते हैं कि हम किसी आपदा के कुचक्र में न आ जायेँ, तो दूर
नहीं कि अल्लाह उन्हें विजय प्रदान करेगा अथवा उसके पास से कोई बात हो
जायेगी, तो वे लोग उस बात पर, जो उन्होंने अपने मन में छुपा रखी है, लज्जित
होंगे।
التفاسير العربية:
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَهَـٰٓؤُلَآءِ
ٱلَّذِينَ أَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَيۡمَٰنِهِمۡ إِنَّهُمۡ
لَمَعَكُمۡۚ حَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ فَأَصۡبَحُواْ خَٰسِرِينَ
तथा (उस समय) ईमान वाले कहेंगेः
क्या यही वे हैं, जो अल्लाह की बड़ी गंभीर शपथें लेकर कहा करते थे कि वे
तुम्हारे साथ हैं? इनके कर्म अकारथ गये और अंततः वे असफल हो गये।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَن يَرۡتَدَّ
مِنكُمۡ عَن دِينِهِۦ فَسَوۡفَ يَأۡتِي ٱللَّهُ بِقَوۡمٖ يُحِبُّهُمۡ
وَيُحِبُّونَهُۥٓ أَذِلَّةٍ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى
ٱلۡكَٰفِرِينَ يُجَٰهِدُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا يَخَافُونَ لَوۡمَةَ
لَآئِمٖۚ ذَٰلِكَ فَضۡلُ ٱللَّهِ يُؤۡتِيهِ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ
وَٰسِعٌ عَلِيمٌ
हे ईमान वालो! तुममें से जो
अपने धर्म से फिर जायेगा, तो अल्लाह (उसके स्थान पर) ऐसे लोगों को पैदा कर
देगा, जिनसे वह प्रेम करेगा और वे उससे प्रेम करेंगे। वे ईमान वालों के लिए
कोमल तथा काफ़िरों के लिए कड़े[1] होंगे, अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे,
किसी निंदा करने वाले की निंदा से नहीं डरेंगे। ये अल्लाह की दया है, जिसे
चाहे प्रदान करता है और अल्लाह (की दया) विशाल है और वह अति ज्ञानी है।
1. कड़े होने का अर्थ यह है कि वह युध्द तथा अपने
धर्म की रक्षा के समय उन के दबाव में नहीं आयेंगे, न जिहाद की निंदा उन्हें
अपने धर्म की रक्षा से रोक सकेगी।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤۡتُونَ
ٱلزَّكَوٰةَ وَهُمۡ رَٰكِعُونَ
तुम्हारे सहायक केवल अल्लाह और
उसके रसूल तथा वो हैं, जो ईमान लाये, नमाज़ की स्थापना करते हैं, ज़कात
देते हैं और अल्लाह के आगे झुकने वाले हैं।
التفاسير العربية:
وَمَن يَتَوَلَّ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَٱلَّذِينَ
ءَامَنُواْ فَإِنَّ حِزۡبَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ
तथा जो अल्लाह और उसके रसूल तथा ईमान वालों को सहायक बनायेगा, तो निश्चय अल्लाह का दल ही छाकर रहेगा।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا
تَتَّخِذُواْ ٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ دِينَكُمۡ هُزُوٗا وَلَعِبٗا مِّنَ
ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَٱلۡكُفَّارَ أَوۡلِيَآءَۚ
وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
हे ईमान वालो! उन्हें जिन्होंने
तुम्हारे धर्म को उपहास तथा खेल बना रखा है, उनमें से, जो तुमसे पहले
पुस्तक दिये गये हैं तथा काफ़िरों को सहायक (मित्र) न बनाओ और अल्लाह से
डरते रहो, यदि तुम वास्तव में ईमान वाले हो।
التفاسير العربية:
وَإِذَا نَادَيۡتُمۡ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ
ٱتَّخَذُوهَا هُزُوٗا وَلَعِبٗاۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَوۡمٞ لَّا
يَعۡقِلُونَ
और जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो, तो वे उसका उपहास करते तथा खेल बनाते हैं, इसलिए कि वे समझ नहीं रखते।
التفاسير العربية:
قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ هَلۡ تَنقِمُونَ
مِنَّآ إِلَّآ أَنۡ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡنَا وَمَآ
أُنزِلَ مِن قَبۡلُ وَأَنَّ أَكۡثَرَكُمۡ فَٰسِقُونَ
(हे नबी!) आप कह दें कि हे
अह्ले किताब! इसके सिवा हमारा दोष किया है, जिसका तुम बदला लेना चाहते हो
कि हम अल्लाह पर तथा जो हमारी ओर उतारा गया और जो हमसे पूर्व उतारा गया,
उसपर ईमान लाये हैं और इसलिए कि तुममें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं?
التفاسير العربية:
قُلۡ هَلۡ أُنَبِّئُكُم بِشَرّٖ مِّن ذَٰلِكَ
مَثُوبَةً عِندَ ٱللَّهِۚ مَن لَّعَنَهُ ٱللَّهُ وَغَضِبَ عَلَيۡهِ
وَجَعَلَ مِنۡهُمُ ٱلۡقِرَدَةَ وَٱلۡخَنَازِيرَ وَعَبَدَ ٱلطَّـٰغُوتَۚ
أُوْلَـٰٓئِكَ شَرّٞ مَّكَانٗا وَأَضَلُّ عَن سَوَآءِ ٱلسَّبِيلِ
आप उनसे कह दें कि क्या तुम्हें
बता दूँ, जिनका प्रतिफल (बदला) अल्लाह के पास इससे भी बुरा है? वे हैं,
जिन्हें अल्लाह ने धिक्कार दिया और उनपर उसका प्रकोप हुआ तथा उनमें से बंदर
और सूअर बना दिये गये तथा ताग़ूत ( असुर, धर्म विरोधी शक्तियों) को पूजने
लगे। इन्हीं का स्थान सबसे बुरा है तथा सर्वाधिक कुपथ हैं।
التفاسير العربية:
وَإِذَا جَآءُوكُمۡ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَقَد
دَّخَلُواْ بِٱلۡكُفۡرِ وَهُمۡ قَدۡ خَرَجُواْ بِهِۦۚ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ
بِمَا كَانُواْ يَكۡتُمُونَ
जब वे[1] तुम्हारे पास आते हैं,
तो कहते हैं कि हम ईमान लाये, जबकि वे कुफ़्र लिए हुए आये और उसी के साथ
वापिस हुए तथा अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है, जिसे वे छुपा रहे हैं।
1. इस में द्विधावादियों का दुराचार बताया गया है।
التفاسير العربية:
وَتَرَىٰ كَثِيرٗا مِّنۡهُمۡ يُسَٰرِعُونَ فِي
ٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَٰنِ وَأَكۡلِهِمُ ٱلسُّحۡتَۚ لَبِئۡسَ مَا كَانُواْ
يَعۡمَلُونَ
तथा आप उनमें से बहुतों को देखेंगे कि पाप तथा अत्याचार और अपने अवैध खाने में दौड़ रहे हैं। वे बड़ा कुकर्म कर रहे हैं।
التفاسير العربية:
لَوۡلَا يَنۡهَىٰهُمُ ٱلرَّبَّـٰنِيُّونَ
وَٱلۡأَحۡبَارُ عَن قَوۡلِهِمُ ٱلۡإِثۡمَ وَأَكۡلِهِمُ ٱلسُّحۡتَۚ لَبِئۡسَ
مَا كَانُواْ يَصۡنَعُونَ
उन्हें उनके धर्माचारी तथा विद्वान पाप की बात करने तथा अवैध खाने से क्यों नहीं रोकते? वे बहुत बुरी रीति बना रहे हैं।
التفاسير العربية:
وَقَالَتِ ٱلۡيَهُودُ يَدُ ٱللَّهِ مَغۡلُولَةٌۚ
غُلَّتۡ أَيۡدِيهِمۡ وَلُعِنُواْ بِمَا قَالُواْۘ بَلۡ يَدَاهُ
مَبۡسُوطَتَانِ يُنفِقُ كَيۡفَ يَشَآءُۚ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرٗا مِّنۡهُم
مَّآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَ طُغۡيَٰنٗا وَكُفۡرٗاۚ وَأَلۡقَيۡنَا
بَيۡنَهُمُ ٱلۡعَدَٰوَةَ وَٱلۡبَغۡضَآءَ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ
كُلَّمَآ أَوۡقَدُواْ نَارٗا لِّلۡحَرۡبِ أَطۡفَأَهَا ٱللَّهُۚ
وَيَسۡعَوۡنَ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَسَادٗاۚ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ
ٱلۡمُفۡسِدِينَ
तथा यहूदियों ने कहा कि अल्लाह
के हाथ बंधे[1] हुए हैं, उन्हीं के हाथ बंधे हुए हैं और वे अपने इस कथन के
कारण धिक्कार दिये गये हैं; बल्कि उसके दोनों हाथ खुले हुए हैं, वह जैसे
चाहे, व्यय (खर्च) करता है और इनमें से अधिक्तर को, जो (क़ुर्आन) आपके
पालनहार की ओर से आपपर उतारा गया है, उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में
अधिक कर देगा और हमने उनके बीच प्रलय के दिन तक के लिए शत्रुता तथा बैर डाल
दिया है। जब कभी वे युध्द की अग्नि सुलगाते हैं, तो अल्लाह उसे बुझा[2]
देता है। वे धरती में उपद्रव का प्रयास करते हैं और अल्लाह विद्रोहियों से
प्रेम नहीं करता।
1. अर्बी मुह़ावरे में हाथ बंधे का अर्थ है कंजूस
होना, और दान-दक्षिणा से हाथ रोकना। (देखियेः सूरह आले इमरान, आयतः181) 2.
अर्थात उन के षड्यंत्र को सफल नहीं होने देता, बल्कि उन का कुफल उन्हीं को
भोगना पड़ता है। जैसा कि नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में
विभिन्न दशाओं में हुआ।
التفاسير العربية:
وَلَوۡ أَنَّ أَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ ءَامَنُواْ
وَٱتَّقَوۡاْ لَكَفَّرۡنَا عَنۡهُمۡ سَيِّـَٔاتِهِمۡ وَلَأَدۡخَلۡنَٰهُمۡ
جَنَّـٰتِ ٱلنَّعِيمِ
और यदि अह्ले किताब ईमान लाते
तथा अल्लाह से डरते, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देते और उन्हें
सुख के स्वर्गों में प्रवेश देते।
التفاسير العربية:
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ أَقَامُواْ ٱلتَّوۡرَىٰةَ
وَٱلۡإِنجِيلَ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِم مِّن رَّبِّهِمۡ لَأَكَلُواْ مِن
فَوۡقِهِمۡ وَمِن تَحۡتِ أَرۡجُلِهِمۚ مِّنۡهُمۡ أُمَّةٞ مُّقۡتَصِدَةٞۖ
وَكَثِيرٞ مِّنۡهُمۡ سَآءَ مَا يَعۡمَلُونَ
तथा यदि वे स्थापित[1] रखते
तौरात और इंजील को और जो भी उनकी ओर उतारा गया है, उनके पालनहार की ओर से,
तो अवश्य अपने ऊपर (आकाश) से तथा पैरों के नीचे (धरती) से[2], जीविका पाते।
उनमें एक संतुलित समुदाय भी है और उनमें से बहुत-से कुकर्म कर रहे हैं।
1. अर्थात उन के आदेशों का पालन करते और उसे अपना
जीवन विधान बनाते। 2. अर्थात आकाश की वर्षा तथा धर्ती की उपज में अधिक्ता
होती।
التفاسير العربية:
۞يَـٰٓأَيُّهَا ٱلرَّسُولُ بَلِّغۡ مَآ أُنزِلَ
إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَۖ وَإِن لَّمۡ تَفۡعَلۡ فَمَا بَلَّغۡتَ
رِسَالَتَهُۥۚ وَٱللَّهُ يَعۡصِمُكَ مِنَ ٱلنَّاسِۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا
يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
हे रसूल![1] जो कुछ आपपर आपके
पालनहार की ओर से उतारा गया है, उसे (सबको) पहुँचा दें और यदि ऐसा नहीं
किया, तो आपने उसका उपदेश नहीं पहुँचाया और अल्लाह (विरोधियों से) आपकी
रक्षा करेगा[2], निश्चय अल्लाह काफ़िरों को मार्गदर्शन नहीं देता।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। 2.
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के नबी होने के पश्चात् आप पर विरोधियों ने
कई बार प्राण घातक आक्रमण का प्रयास किया। जब आप ने मक्का में सफ़ा पर्वत
से एकेश्वरवाद का उपदेश दिया तो आप के चचा अबू लहब ने आप पर पत्थर चलाये।
फिर उसी युग में आप काबा के पास नमाज़ पढ़ रहे थे कि अबू जह्ल ने आप की
गर्दन रोंदने का प्रयास किया, किन्तु आप के रक्षक फ़रिश्तों को देख कर
भागा। और जब क़ुरैश ने यह योजना बनाई कि आप को वध कर दिया जाये, और
प्रत्येक क़बीले का एक युवक आप के द्वार पर तलवार ले कर खड़ा रहे और आप
निकलें तो सब एक साथ प्रहार कर दें, तब भी आप उन के बीच से निकल गये। और
किसी ने देखा भी नहीं। फिर आप ने अपने साथी अबू बक्र के साथ हिजरत के समय
सौर पर्वत की गुफा में शरण ली। और काफ़िर गुफा के मुँह तक आप की खोज में आ
पहुँचे, उन्हें आप के साथी ने देखा, किन्तु वे आप को नहीं देख सके। और जब
वहाँ से मदीना चले तो सुराक़ा नामी एक व्यक्ति ने क़रैश के पुरस्कार के लोभ
में आ कर आप का पीछा किया। किन्तु उस के घोड़े के अगले पैर भूमी में धंस
गये। उस ने आप को गुहारा, आप ने दुआ कर दी, और उस का घोड़ा निकल गया। उस ने
ऐसा प्रयास तीन बार किया फिर भी असफल रहा। आप ने उस को क्षमा कर दिया। और
यह देख कर वह मुसलमान हो गया। आप ने फ़रमाया कि एक दिन तुम अपने हाथ में
ईरान के राजा का कंगन पहनोगे। और उमर बिन ख़त्ताब के युग में यह बात सच
साबित हुई। मदीने में भी यहूदियों के क़बीले बनू नज़ीर ने छत के ऊपर से आप
पर भारी पत्थार गिराने का प्रयास किया, जिस से अल्लाह ने आप को सूचित कर
दिया। ख़ैबर की एक यहूदी स्त्री ने आप को विष मिला कर बकरी का माँस खिलाया।
परन्तु आप पर उस का कोई बड़ा प्रभाव नहीं हुआ। जब कि आप का एक साथी उसे खा
कर मर गया। एक युध्द यात्रा में आप अकेले एक वृक्ष के नीचे सो गये, एक
व्यक्ति आया और आप की तलवार ले कर कहाः मुझ से आप को कौन बचायेगा? आप ने
कहाः अल्लाह! यह सुन कर वह काँपने लगा, और उस के हाथ से तलवार गिर गई और आप
ने उसे क्षमा कर दिया। इन सब घटनाओं से यह सिध्द हो जाता है कि अल्लाह ने
आप की रक्षा करने का जो वचन आप को दिया, उस को पूरा कर दिया।
التفاسير العربية:
قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لَسۡتُمۡ عَلَىٰ
شَيۡءٍ حَتَّىٰ تُقِيمُواْ ٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَ وَمَآ أُنزِلَ
إِلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُمۡۗ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرٗا مِّنۡهُم مَّآ
أُنزِلَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَ طُغۡيَٰنٗا وَكُفۡرٗاۖ فَلَا تَأۡسَ عَلَى
ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ
(हे नबी!) आप कह दें कि हे
अह्ले किताब! तुम किसी धर्म पर नहीं हो, जब तक तौरात तथा इंजील और उस
(क़ुर्आन) की स्थापना[1] न करो, जो तुम्हारी ओर तुम्हारे पालनहार की ओर से
उतारा गया है तथा उनमें से अधिक्तर को जो (क़ुर्आन) आपके पालनहार की ओर से
उतारा गया है, अवश्य उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में अधिक कर देगा। अतः,
आप काफ़िरों (के अविश्वास) पर दुखी न हों।
1. अर्थात उन के आदेशों का पालन न करो।
التفاسير العربية:
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِينَ هَادُواْ
وَٱلصَّـٰبِـُٔونَ وَٱلنَّصَٰرَىٰ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ
ٱلۡأٓخِرِ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ
يَحۡزَنُونَ
वास्तव में, जो ईमान लाये, जो
यहूदी हुए, साबी तथा ईसाई, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान
लायेगा तथा सत्कर्म करेगा, तो उन्हीं के लिए कोई डर नहीं और न वे उदासीन[1]
होंगे।
1. आयत का भावार्थ यह है कि इस्लाम से पहले यहूदी,
ईसाई तथा साबी जिन्हों ने अपने धर्म को पकड़ रखा है, और उस में किसी
प्रकार की हेर-फेर नहीं किया, अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखा और सदाचार किये
उन को कोई भय और चिंता नहीं होनी चाहिये। इसी प्रकार की आयत सूरह बक़रह
(62) में भी आई है, जिस के विषय में आता है कि कुछ लोगों ने नबी
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि उन लोगों का क्या होगा जो
अपने धर्म पर स्थित थे और मर गये? इसी पर यह आयत उतरी। परन्तु अब नबी
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आप के लाये धर्म पर ईमान लाना अनिवार्य है,
इस के बिना मोक्ष (नजात) नहीं मिल सकता।
التفاسير العربية:
لَقَدۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ
وَأَرۡسَلۡنَآ إِلَيۡهِمۡ رُسُلٗاۖ كُلَّمَا جَآءَهُمۡ رَسُولُۢ بِمَا
لَا تَهۡوَىٰٓ أَنفُسُهُمۡ فَرِيقٗا كَذَّبُواْ وَفَرِيقٗا يَقۡتُلُونَ
हमने बनी इस्राईल से दृढ़ वचन
लिया तथा उनके पास बहुत-से रसूल भेजे, (परन्तु) जब कभी कोई रसूल उनकी अपनी
आकांक्षाओं के विरुध्द कुछ लाया, तो एक गिरोह को उन्होंने झुठला दिया तथा
एक गिरोह को वध करते रहे।
التفاسير العربية:
وَحَسِبُوٓاْ أَلَّا تَكُونَ فِتۡنَةٞ فَعَمُواْ
وَصَمُّواْ ثُمَّ تَابَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡ ثُمَّ عَمُواْ وَصَمُّواْ
كَثِيرٞ مِّنۡهُمۡۚ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا يَعۡمَلُونَ
तथा वे समझे कि कोई परीक्षा न
होगी, इसलिए अंधे-बहरे हो गये, फिर अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया, फिर भी
उनमें से अधिक्तर अंधे और बहरे हो गये तथा वे जो कुछ कर रहे हैं, अल्लाह
उसे देख रहा है।
التفاسير العربية:
لَقَدۡ كَفَرَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ
هُوَ ٱلۡمَسِيحُ ٱبۡنُ مَرۡيَمَۖ وَقَالَ ٱلۡمَسِيحُ يَٰبَنِيٓ
إِسۡرَـٰٓءِيلَ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمۡۖ إِنَّهُۥ مَن
يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدۡ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِ ٱلۡجَنَّةَ
وَمَأۡوَىٰهُ ٱلنَّارُۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِينَ مِنۡ أَنصَارٖ
निश्चय वे काफ़िर हो गये,
जिन्होंने कहा कि अल्लाह[1] मर्यम का पुत्र मसीह़ ही है। जबकि मसीह़ ने कहा
थाः हे बनी इस्राईल! उस अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, जो मेरा पालनहार तथा
तुम्हारा पालनहार है, वास्तव में, जिसने अल्लाह का साझी बना लिया, उसपर
अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम (वर्जित) कर दिया और उसका निवास स्थान नरक है
तथा अत्याचारों का कोई सहायक न होगा।
1. आयत का भावार्थ यह है कि ईसाईयों को भी मूल
धर्म एकेश्वरवाद और सदाचार की शिक्षा दी गई थी। परन्तु वह भी उस से फिर
गये, तथा ईसा को स्वयं अल्लाह अथवा अल्लाह का अंश बना दिया, और पिता-पुत्र
और पवित्रात्मा तीनों के योग को एक प्रभु मानने लगे।
التفاسير العربية:
لَّقَدۡ كَفَرَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ
ثَالِثُ ثَلَٰثَةٖۘ وَمَا مِنۡ إِلَٰهٍ إِلَّآ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۚ وَإِن
لَّمۡ يَنتَهُواْ عَمَّا يَقُولُونَ لَيَمَسَّنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ
مِنۡهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٌ
निश्चय वे भी काफ़िर हो गये,
जिन्होंने कहा कि अल्लाह तीन का तीसरा है! जबकि कोई पूज्य नहीं है, परन्तु
वही अकेला पूज्य है और यदि वे जो कुछ कहते हैं, उससे नहीं रुके, तो उनमें
से काफ़िरों को दुखदायी यातना होगी।
التفاسير العربية:
أَفَلَا يَتُوبُونَ إِلَى ٱللَّهِ وَيَسۡتَغۡفِرُونَهُۥۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
वे अल्लाह से तौबा तथा क्षमा याचना क्यों नहीं करते, जबकि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है?
التفاسير العربية:
مَّا ٱلۡمَسِيحُ ٱبۡنُ مَرۡيَمَ إِلَّا رَسُولٞ
قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِ ٱلرُّسُلُ وَأُمُّهُۥ صِدِّيقَةٞۖ كَانَا
يَأۡكُلَانِ ٱلطَّعَامَۗ ٱنظُرۡ كَيۡفَ نُبَيِّنُ لَهُمُ ٱلۡأٓيَٰتِ ثُمَّ
ٱنظُرۡ أَنَّىٰ يُؤۡفَكُونَ
मर्यम का पुत्र मसीह़ इसके सिवा
कुछ नहीं कि वह एक रसूल है, उससे पहले भी बहुत-से रसूल हो चुके हैं, उसकी
माँ सच्ची थी, दोनों भोजन करते थे, आप देखें कि हम कैसे उनके लिए निशानियाँ
(एकेश्वरवाद के लक्षण) उजागर कर रहे हैं, फिर देखिए कि वे कहाँ बहके[1] जा
रहे हैं?
1. आयत का भावार्थ यह है कि ईसाईयों को भी मूल
धर्म एकेश्वरवाद और सदाचार की शिक्षा दी गई थी। परन्तु वह भी उस से फिर
गये, तथा ईसा को स्वयं अल्लाह तथा अल्लाह का अंश बना दिया, और पिता-पुत्र
और पवित्रात्मा तीनों के योग को एक प्रभु मानने लगे।
التفاسير العربية:
قُلۡ أَتَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا
يَمۡلِكُ لَكُمۡ ضَرّٗا وَلَا نَفۡعٗاۚ وَٱللَّهُ هُوَ ٱلسَّمِيعُ
ٱلۡعَلِيمُ
आप उनसे कह दें कि क्या तुम
अल्लाह के सिवा उसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो, जो तुम्हें कोई हानि और लाभ
नहीं पहुँचा सकता? तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
التفاسير العربية:
قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لَا تَغۡلُواْ فِي
دِينِكُمۡ غَيۡرَ ٱلۡحَقِّ وَلَا تَتَّبِعُوٓاْ أَهۡوَآءَ قَوۡمٖ قَدۡ
ضَلُّواْ مِن قَبۡلُ وَأَضَلُّواْ كَثِيرٗا وَضَلُّواْ عَن سَوَآءِ
ٱلسَّبِيلِ
(हे नबी!) कह दो कि हे अह्ले
किताब! अपने धर्म में अवैध अति न करो[1] तथा उनकी अभिलाषाओं पर न चलो, जो
तुमसे पहले कुपथ हो[2] चुके और बहुतों को कुपथ कर गये और संमार्ग से विचलित
हो गये।
1. "अति न करो" अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम को प्रभु
अथवा प्रभु का पुत्र न बनाओ। 2. इन से अभिप्राय वह हो सकते हैं, जो नबियों
को स्वयं प्रभु अथवा प्रभु का अंश मानते हैं।
التفاسير العربية:
لُعِنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنۢ بَنِيٓ
إِسۡرَـٰٓءِيلَ عَلَىٰ لِسَانِ دَاوُۥدَ وَعِيسَى ٱبۡنِ مَرۡيَمَۚ ذَٰلِكَ
بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ يَعۡتَدُونَ
बनी इस्राईल में से जो काफ़िर
हो गये, वे दावूद तथा मर्यम के पुत्र ईसा की ज़बान पर धिक्कार दिये[1] गये,
ये इस कारण कि उन्होंने अवज्ञा की तथी (धर्म की सीमा का) उल्लंघन कर रहे
थे।
1. अर्थात धर्म पुस्तक ज़बूर तथा इंजील में इन के
धिक्कृत होने की सूचना दी गयी है। ( इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
كَانُواْ لَا يَتَنَاهَوۡنَ عَن مُّنكَرٖ فَعَلُوهُۚ لَبِئۡسَ مَا كَانُواْ يَفۡعَلُونَ
वे एक-दूसरे को किसी बुराई से, जो वे करते थे, रोकते नहीं थे, निश्चय वे बड़ी बुराई कर रहे थे[1]।
1. इस आयत में उन पर धिक्कार का कारण बताया गया है।
التفاسير العربية:
تَرَىٰ كَثِيرٗا مِّنۡهُمۡ يَتَوَلَّوۡنَ
ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ لَبِئۡسَ مَا قَدَّمَتۡ لَهُمۡ أَنفُسُهُمۡ أَن
سَخِطَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡ وَفِي ٱلۡعَذَابِ هُمۡ خَٰلِدُونَ
आप उनमें से अधिक्तर को देखेंगे
कि काफ़िरों को अपना मित्र बना रहे हैं। जो कर्म उन्होंने अपने लिए आगे
भेजा है, बहुत बुरा है कि अल्लाह उनपर क्रुध्द हो गया तथा यातना में वही
सदावासी होंगे।
التفاسير العربية:
وَلَوۡ كَانُواْ يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ
وَٱلنَّبِيِّ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِ مَا ٱتَّخَذُوهُمۡ أَوۡلِيَآءَ
وَلَٰكِنَّ كَثِيرٗا مِّنۡهُمۡ فَٰسِقُونَ
और यदि वे अल्लाह पर तथा नबी पर
और जो उनपर उतारा गया, उसपर ईमान लाते, तो उन्हें मित्र न बनाते[1],
परन्तु उनमें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं।
1. भावार्थ यह है कि यदि यहूदी, मूसा अलैहिस्सलाम
को अपना नबी और तौरात को अल्लाह की किताब मानते हैं, जैसा कि उन का दावा है
तो वे मुसलमानों के शत्रु और काफ़िरों को मित्र नहीं बनाते। क़ुर्आन का यह
सच आज भी देखा जा सकता है।
التفاسير العربية:
۞لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ ٱلنَّاسِ عَدَٰوَةٗ
لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱلۡيَهُودَ وَٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْۖ وَلَتَجِدَنَّ
أَقۡرَبَهُم مَّوَدَّةٗ لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ
إِنَّا نَصَٰرَىٰۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّ مِنۡهُمۡ قِسِّيسِينَ وَرُهۡبَانٗا
وَأَنَّهُمۡ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ
(हे नबी!) आप उनका, जो ईमान
लाये हैं, सबसे कड़ा शत्रु यहूदियों तथा मिश्रणवादियों को पायेंगे और जो
ईमान लाये हैं, उनके सबसे अधिक समीप आप उन्हें पायेंगे, जो अपने को ईसाई
कहते हैं। ये बात इसलिए है कि उनमें उपासक तथा सन्यासी हैं और वे अभिमान[1]
नहीं करते।
1. अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा)
कहते हैं कि यह आयत ह़ब्शा के राजा नजाशी और उस के साथियों के बारे में
उतरी, जो क़ुर्आन सुन कर रोने लगे, और मुसलमान हो गये। (इब्ने जरीर)
التفاسير العربية:
وَإِذَا سَمِعُواْ مَآ أُنزِلَ إِلَى ٱلرَّسُولِ
تَرَىٰٓ أَعۡيُنَهُمۡ تَفِيضُ مِنَ ٱلدَّمۡعِ مِمَّا عَرَفُواْ مِنَ
ٱلۡحَقِّۖ يَقُولُونَ رَبَّنَآ ءَامَنَّا فَٱكۡتُبۡنَا مَعَ
ٱلشَّـٰهِدِينَ
तथा जब वे (ईसाई) उस (क़ुर्आन)
को सुनते हैं, जो रसूल पर उतरा है, तो आप देखते हैं कि उनकी आँखें आँसू से
उबल रही हैं, उस सत्य के कारण, जिसे उन्होंने पहचान लिया है। वे कहते हैं,
हे हमारे पालनहार! हम ईमान ले आये, अतः हमें (सत्य) के साथियों में लिख[1]
ले।
1. जब जाफ़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने ह़ब्शा के
राजा नजाशी को सूरह मर्यम की आरंभिक आयतें सुनाईं, तो वह और उस के पादरी
रोने लगे। (सीरत इब्ने हिशामः1/359)
التفاسير العربية:
وَمَا لَنَا لَا نُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَمَا
جَآءَنَا مِنَ ٱلۡحَقِّ وَنَطۡمَعُ أَن يُدۡخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ
ٱلۡقَوۡمِ ٱلصَّـٰلِحِينَ
(तथा कहते हैं) क्या कारण है कि
हम अल्लाह पर तथा इस सत्य (क़ुर्आन) पर ईमान (विश्वास) न करें? और हम आशा
रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों में सम्मिलित कर देगा।
التفاسير العربية:
فَأَثَٰبَهُمُ ٱللَّهُ بِمَا قَالُواْ جَنَّـٰتٖ
تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ
ٱلۡمُحۡسِنِينَ
तो अल्लाह ने उनके ये कहने के
कारण उन्हें ऐसे स्वर्ग प्रदान कर दिये, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं, वे
उनमें सदावासी होंगे तथा यही सत्कर्मियों का प्रतिफल (बदला) है।
التفاسير العربية:
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ
بِـَٔايَٰتِنَآ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَحِيمِ
तथा जो काफ़िर हो गये और हमारी आयतों को झुठला दिया, तो वही नारकी हैं।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا
تُحَرِّمُواْ طَيِّبَٰتِ مَآ أَحَلَّ ٱللَّهُ لَكُمۡ وَلَا تَعۡتَدُوٓاْۚ
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُعۡتَدِينَ
हे ईमान वालो! उन स्वच्छ पवित्र
चीजों को जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) की हैं, ह़राम (अवैध)[1] न
करो और सीमा का उल्लंघन न करो। निःसंदेह अल्लाह उल्लंघनकारियों[2] से
प्रेम नहीं करता।
1. अर्थात किसी भी खाद्य अथवा वस्तु को वैध अथवा
अवैध करने का अधिकार केवल अल्लाह को है। 2. यहाँ से वर्णन क्रम, फिर आदेशों
तथा निषेधों की ओर फिर रहा है। अन्य धर्मों के अनुयायियों ने सन्यास को
अल्लाह के सामिप्य का साधन समझ लिया था, और ईसाईयों ने सन्यास की रीति बना
ली थी और अपने ऊपर संसारिक उचित स्वाद तथा सुख को अवैध कर लिया था। इस लिये
यहाँ सावधान किया जा रहा है कि यह कोई अच्छाई नहीं, बल्कि धर्म सीमा का
उल्लंघन है।
التفاسير العربية:
وَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ حَلَٰلٗا
طَيِّبٗاۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِيٓ أَنتُم بِهِۦ مُؤۡمِنُونَ
तथा उसमें से खाओ, जो ह़लाल
(वैध) स्वच्छ चीज़ अल्लाह ने तुम्हें प्रदान की हैं तथा अल्लाह (की अवज्ञा)
से डरते रहो, यदि तुम उसीपर ईमान (विश्वास) रखते हो।
التفاسير العربية:
لَا يُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغۡوِ فِيٓ
أَيۡمَٰنِكُمۡ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ ٱلۡأَيۡمَٰنَۖ
فَكَفَّـٰرَتُهُۥٓ إِطۡعَامُ عَشَرَةِ مَسَٰكِينَ مِنۡ أَوۡسَطِ مَا
تُطۡعِمُونَ أَهۡلِيكُمۡ أَوۡ كِسۡوَتُهُمۡ أَوۡ تَحۡرِيرُ رَقَبَةٖۖ فَمَن
لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ ثَلَٰثَةِ أَيَّامٖۚ ذَٰلِكَ كَفَّـٰرَةُ
أَيۡمَٰنِكُمۡ إِذَا حَلَفۡتُمۡۚ وَٱحۡفَظُوٓاْ أَيۡمَٰنَكُمۡۚ كَذَٰلِكَ
يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ
शपथों[1] पर नहीं पकड़ता, परन्तु जो शपथ जान-बूझ कर ली हो, उसपर रकड़ता
है, तो उसका[2] प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, उस माध्यमिक भोजन
में से, जो तुम अपने परिवार को खिलाते हो अथवा उन्हें वस्त्र दो अथवा एक
दास मुक्त करो और जिसे ये सब उपलब्ध न हो, तो तीन दिन रोज़ा रखना है। ये
तुम्हारी शपथों का प्रायश्चित है, जब तुम शपथ लो तथा अपनी शपथों की रक्षा
करो, इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों (आदेशों) का वर्णन करता
है, ताकि तुम उसका उपकार मानो।
1. व्यर्थ अर्थात बिना निश्चय के। जैसे कोई
बात-बात पर बोलता हैः (नहीं, अल्लाह की शपथ!) अथवा (हाँ, अल्लाह की शपथ!)
(बुख़ारीः4613) 2. अर्थात यदि शपथ तोड़ दे, तो यह प्रायश्चित है।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِنَّمَا
ٱلۡخَمۡرُ وَٱلۡمَيۡسِرُ وَٱلۡأَنصَابُ وَٱلۡأَزۡلَٰمُ رِجۡسٞ مِّنۡ عَمَلِ
ٱلشَّيۡطَٰنِ فَٱجۡتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ
हे ईमान वालो! निःसंदेह[1] मदिरा, जुआ, देवस्थान[2] और पाँसे[3] शैतानी मलिन कर्म हैं, अतः इनसे दूर रहो, ताकि तुम सफल हो जाओ।
1. शराब के निषेध के विषय में पहले सूरह बक़रह आयत
219, और सूरह निसा आयत 43 में दो आदेश आ चुके हैं। और यह अन्तिम आदेश है,
जिस में शराब को सदैव के लिये वर्जित कर दिया गया है। 2. देवस्थान अर्थात
वह वेदियाँ जिन पर देवी-देवताओं के नाम पर पशुओं की बलि दी जाती है। आयत का
भावार्थ यह है कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य के नाम से बलि दिया हुआ पशु
अथवा प्रसाद अवैध है। 3. पाँसे, यह तीन तीर होते हैं, जिन से वह कोई काम
करने के समय यह निरणय लेते थे कि उसे करें या न करें। उन में एक पर "करो"
और दूसरे पर "मत करो" और तीसरे पर "शून्य" लिखा होता था। जूवे में लाट्री
और रेस आदि भी शामिल हैं।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا يُرِيدُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَن يُوقِعَ
بَيۡنَكُمُ ٱلۡعَدَٰوَةَ وَٱلۡبَغۡضَآءَ فِي ٱلۡخَمۡرِ وَٱلۡمَيۡسِرِ
وَيَصُدَّكُمۡ عَن ذِكۡرِ ٱللَّهِ وَعَنِ ٱلصَّلَوٰةِۖ فَهَلۡ أَنتُم
مُّنتَهُونَ
शैतान तो यही चाहता है कि शराब
(मदिरा) तथा जूए द्वारा तुम्हारे बीच बैर तथा द्वेष डाल दे और तुम्हें
अल्लाह की याद तथा नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम रुकोगे या नहीं?
التفاسير العربية:
وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُواْ ٱلرَّسُولَ
وَٱحۡذَرُواْۚ فَإِن تَوَلَّيۡتُمۡ فَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّمَا عَلَىٰ
رَسُولِنَا ٱلۡبَلَٰغُ ٱلۡمُبِينُ
तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो,
उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो तथा (उनकी अवज्ञा से) सावधान रहो। यदि तुम
विमुख हुए, तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल खुला उपदेश पहुँचा देना है।
التفاسير العربية:
لَيۡسَ عَلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ
ٱلصَّـٰلِحَٰتِ جُنَاحٞ فِيمَا طَعِمُوٓاْ إِذَا مَا ٱتَّقَواْ
وَّءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ ثُمَّ ٱتَّقَواْ وَّءَامَنُواْ
ثُمَّ ٱتَّقَواْ وَّأَحۡسَنُواْۚ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
उनपर जो ईमान लाये तथा सदाचार
करते रहे, उसमें कोई दोष नहीं, जो (निषेधाज्ञा से पहले) खा लिया, जब वे
अल्लाह से डरते रहे, ईमान पर स्थिर रहे, सत्कर्म करते रहे, फिर डरते और
सत्कर्म करते रहे, फिर (रोके गये तो) अल्लाह से डरे और सदाचार करते रहे।
अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता[1] है।
1. आयत का भावार्थ यह है कि जिन्हों ने वर्जित
चीज़ों का निषेधाज्ञा से पहले प्रयोग किया, फिर जब भी उन को अवैध किया गया
तो उन से रुक गये, उन पर कोई दोष नहीं। सह़ीह़ ह़दीस में है कि जब शराब
वर्जित की गयी तो कुछ लोगों ने कहा कि कुछ लोग इस स्थिति में मारे गये कि
वह शराब पिये हुये थे, उसी पर यह आयत उतरी। (बुख़ारीः4620) आप सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम ने कहाः जो भी नशा लाये, वह मदिरा और अवैध है। (सह़ीह़
बुख़ारीः2003) और इस्लाम में उस का दण्ड अस्सी कोड़े हैं। (बुख़ारीः6779)
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ
لَيَبۡلُوَنَّكُمُ ٱللَّهُ بِشَيۡءٖ مِّنَ ٱلصَّيۡدِ تَنَالُهُۥٓ
أَيۡدِيكُمۡ وَرِمَاحُكُمۡ لِيَعۡلَمَ ٱللَّهُ مَن يَخَافُهُۥ بِٱلۡغَيۡبِۚ
فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ بَعۡدَ ذَٰلِكَ فَلَهُۥ عَذَابٌ أَلِيمٞ
हे ईमान वालो! अल्लाह कुछ शिकार
द्वारा जिन तक तुम्हारे हाथ तथा भाले पहुँचेंगे, अवश्य तुम्हारी परीक्षा
लेगा, ताकि ये जान ले कि तुममें से कौन उससे बिन देखे डरता है? फिर इस
(आदेश) के पश्चात् जिसने (इसका) उल्लंघन किया, तो उसी के लिए दुःखदायी
यातना है।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا
تَقۡتُلُواْ ٱلصَّيۡدَ وَأَنتُمۡ حُرُمٞۚ وَمَن قَتَلَهُۥ مِنكُم
مُّتَعَمِّدٗا فَجَزَآءٞ مِّثۡلُ مَا قَتَلَ مِنَ ٱلنَّعَمِ يَحۡكُمُ
بِهِۦ ذَوَا عَدۡلٖ مِّنكُمۡ هَدۡيَۢا بَٰلِغَ ٱلۡكَعۡبَةِ أَوۡ
كَفَّـٰرَةٞ طَعَامُ مَسَٰكِينَ أَوۡ عَدۡلُ ذَٰلِكَ صِيَامٗا لِّيَذُوقَ
وَبَالَ أَمۡرِهِۦۗ عَفَا ٱللَّهُ عَمَّا سَلَفَۚ وَمَنۡ عَادَ فَيَنتَقِمُ
ٱللَّهُ مِنۡهُۚ وَٱللَّهُ عَزِيزٞ ذُو ٱنتِقَامٍ
हे ईमान वलो! शिकार न करो[1],
जब तुम एह़राम की स्थिति में रहो तथा तुममें से जो कोई जान-बूझ कर ऐसा कर
जाये, तो पालतू पशु से शिकार किये पशु जैसा बदला (प्रतिकार) है, जिसका
निर्णय तुममें से दो न्यायकारी व्यक्ति करेंगे, जो काबा तक हद्य (उपहार
स्वरूप) भेजा जाये। अथवा[2] प्रायश्चित है, जो कुछ निर्धनों का खाना अथवा
उसके बराबर रोज़े रखना है। ताकि अपने किये का दुष्परिणाम चखो। इस आदेश से
पूर्व जो हुआ, अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया और जो फिर करेगा, अल्लाह उससे
बदला लेगा और अल्लाह प्रभुत्वशाली बदला लेने वाला है।
1. इस से अभिप्राय थल का शिकार है। 2. अर्थात यदि
शिकार के पशु के समान पालतू पशु न हो, तो उस का मूल्य ह़रम के निर्धनों को
खाने के लिये भेजा जाये अथवा उस के मूल्य से जितने निर्धनों को खिलाया जा
सकता हो, उतने व्रत रखे जायें।
التفاسير العربية:
أُحِلَّ لَكُمۡ صَيۡدُ ٱلۡبَحۡرِ وَطَعَامُهُۥ
مَتَٰعٗا لَّكُمۡ وَلِلسَّيَّارَةِۖ وَحُرِّمَ عَلَيۡكُمۡ صَيۡدُ ٱلۡبَرِّ
مَا دُمۡتُمۡ حُرُمٗاۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِيٓ إِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ
तथा तुम्हारे लिए जल का शिकार
और उसका खाद्य[1] ह़लाल (वैध) कर दिया गया है, तुम्हारे तथा यात्रियों के
लाभ के लिए तथा तुमपर थल का शिकार जब तक एह़राम की स्थिति में रहो, ह़राम
(अवैध) कर दिया गया है और अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो, जिसकी ओर तुम
सभी एकत्र किये जाओगे।
1. अर्थात जो बिना शिकार किये हाथ आये, जैसे मरी
हुई मछली। अर्थात जल का शिकार एह़राम की स्थिति में तथा साधारण अवस्था में
उचित है।
التفاسير العربية:
۞جَعَلَ ٱللَّهُ ٱلۡكَعۡبَةَ ٱلۡبَيۡتَ ٱلۡحَرَامَ
قِيَٰمٗا لِّلنَّاسِ وَٱلشَّهۡرَ ٱلۡحَرَامَ وَٱلۡهَدۡيَ
وَٱلۡقَلَـٰٓئِدَۚ ذَٰلِكَ لِتَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا فِي
ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَأَنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٌ
अल्लाह ने आदरणीय घर काबा को
लोगों के लिए (शांति तथा एकता की) स्थापना का साधन बना दिया है तथा आदरणीय
मासों[1] और (ह़ज) की क़ुर्बानी तथा क़ुर्बानी के पशुओं को, जिन्हें पट्टे
पहनाये गये हों। ये इसलिए किया गया ताकि तुम्हें ज्ञान हो जाये कि अल्लाह,
जो कुछ आकाशों और जो कुछ धरती में है, सबको जानता है। तथा निःसंदेह अल्लाह
प्रत्येक विषय का ज्ञानी है।
1. आदर्णीय मासों से अभिप्रेत ज़ुलक़ादा, ज़ुलह़िज्जा, मुह़र्रम और रजब के महीने हैं।
التفاسير العربية:
ٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ وَأَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
तुम जान लो कि अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है और ये कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् (भी) है।
التفاسير العربية:
مَّا عَلَى ٱلرَّسُولِ إِلَّا ٱلۡبَلَٰغُۗ
وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا تُبۡدُونَ وَمَا تَكۡتُمُونَ
अल्लाह के रसूल का दायित्व इसके सिवा कुछ नहीं कि उपदेश पहुँचा दे और अल्लाह जो तुम बोलते और जो मन में रखते हो, सब जानता है।
التفاسير العربية:
قُل لَّا يَسۡتَوِي ٱلۡخَبِيثُ وَٱلطَّيِّبُ
وَلَوۡ أَعۡجَبَكَ كَثۡرَةُ ٱلۡخَبِيثِۚ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ يَـٰٓأُوْلِي
ٱلۡأَلۡبَٰبِ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ
(हे नबी!) कह दो कि मलिन तथा
पवित्र समान नहीं हो सकते। यद्यपि मलिन की अधिक्ता तुम्हें भा रही हो। तो
हे मतिमानो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरो, ताकि तुम सफल हो जाओ[1]।
1. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने जिस से रोक
दिया है, वही मलिन और जिस की अनुमति दी है, वही पवित्र है। अतः मलिन में
रूचि न रखो, और किसी चीज़ की कमी और अधिक्ता को न देखो, उस के लाभ और हानि
को देखो।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا
تَسۡـَٔلُواْ عَنۡ أَشۡيَآءَ إِن تُبۡدَ لَكُمۡ تَسُؤۡكُمۡ وَإِن
تَسۡـَٔلُواْ عَنۡهَا حِينَ يُنَزَّلُ ٱلۡقُرۡءَانُ تُبۡدَ لَكُمۡ عَفَا
ٱللَّهُ عَنۡهَاۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٞ
हे ईमान वालो! ऐसी बहुत सी
चीज़ों के विषय में प्रश्न न करो, जो यदि तुम्हें बता दी जायें, तो तुम्हें
बुरा लग जाये तथा यदि तुम, उनके विषय में, जबकि क़ुर्आन उतर रहा है,
प्रश्न करोगे, तो वो तुम्हारे लिए खोल दी जायेंगी। अल्लाह ने तुम्हें क्षमा
कर दिया और अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील[1] है।
1. इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) कहते हैं
कि कुछ लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उपहास के लिये प्रश्न किया
करते थे। कोई प्रश्न करता कि मेरा पिता कौन है? किसी की ऊँटनी खो गई हो तो
आप से प्रश्न करता कि मेरी ऊँटनी कहाँ है? इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़
बुख़ारीः4622)
التفاسير العربية:
قَدۡ سَأَلَهَا قَوۡمٞ مِّن قَبۡلِكُمۡ ثُمَّ أَصۡبَحُواْ بِهَا كَٰفِرِينَ
ऐसे ही प्रश्न एक समुदाय ने तुमसे पहले[1] किये, फिर इसके कारण वे काफ़िर हो गये।
1. अर्थात अपने रसूलों से। आयत का भावार्थ यह है
कि धर्म के विषय में कुरेद न करो। जो करना है, अल्लाह ने बता दिया है, और
जो नहीं बताया है उसे क्षमा कर दिया है, अतः अपने मन से प्रश्न न करो,
अन्यथा धर्म में सुविधा की जगह असुविधा पैदा होगी, और प्रतिबंध अधिक हो
जायेंगे, तो फिर तुम उन का पालन न कर सकोगे।
التفاسير العربية:
مَا جَعَلَ ٱللَّهُ مِنۢ بَحِيرَةٖ وَلَا
سَآئِبَةٖ وَلَا وَصِيلَةٖ وَلَا حَامٖ وَلَٰكِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ
يَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَۖ وَأَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ
अल्लाह ने बह़ीरा, साइबा, वसीला
और ह़ाम, कुछ नहीं बनाया[1] है, परन्तु जो काफ़िर हो गये वे अल्लाह पर झूठ
घड़ रहे हैं और उनमें अधिक्तर निर्बोध हैं।
1. अरब के मिश्रणवादी देवी- देवता के नाम पर कुछ
पशुओं को छोड़ देते थे, और उन्हें पवित्र समझते थे, यहाँ उन्हीं की चर्चा
की गई है। बह़ीरा- वह ऊँटनी जिस को उस का कान चीर कर देवताओं के लिये मुक्त
कर दिया जाता था, और उस का दूध कोई नहीं दूह सकता था। साइबा- वह पशु जिसे
देवताओं के नाम पर मुक्त कर देते थे, जिस पर न कोई बोझ लाद सकता था, न सवार
हो सकता था। वसीला- वह ऊँटनी जिस का पहला तथा दूसरा बच्चा मादा हो, ऐसी
ऊँटनी को भी देवताओं के नाम पर मुक्त कर देते थे। ह़ाम- नर जिस के वीर्य से
दस बच्चे हो जायें, उन्हें भी देवताओं के नाम पर साँड बना कर मुक्त कर
दिया जाता था। भावार्थ यह है कि यह अनर्गल चीजें हैं। अल्लाह ने इन का आदेश
नहीं दिया है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः मैं ने नरक को देखा
कि उस की ज्वाला एक दूसरे को तोड़ रही है। और अमर बिन लुह़य्य को देखा कि
वह अपनी आँतें खींच रहा है। उसी ने सब से पहले साइबा बनाया था।
(बुख़ारीः4624)
التفاسير العربية:
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡاْ إِلَىٰ مَآ
أَنزَلَ ٱللَّهُ وَإِلَى ٱلرَّسُولِ قَالُواْ حَسۡبُنَا مَا وَجَدۡنَا
عَلَيۡهِ ءَابَآءَنَآۚ أَوَلَوۡ كَانَ ءَابَآؤُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
شَيۡـٔٗا وَلَا يَهۡتَدُونَ
और जब उनसे कहा जाता है कि उसकी
ओर आओ, जो अल्लाह ने उतारा है तथा रसूल की ओर (आओ), तो कहते हैं, हमें वही
बस है, जिसपर हमने अपने पूर्वजों को पाया है, क्या उनके पूर्वज कुछ न
जानते रहे हों और न संमार्ग पर रहे हों (तब भी वे उन्हीं के रास्ते पर
चलेंगे)?
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ عَلَيۡكُمۡ
أَنفُسَكُمۡۖ لَا يَضُرُّكُم مَّن ضَلَّ إِذَا ٱهۡتَدَيۡتُمۡۚ إِلَى
ٱللَّهِ مَرۡجِعُكُمۡ جَمِيعٗا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
हे ईमान वालो! तुम अपनी चिन्ता
करो, तुम्हें वे हानि नहीं पहुँचा सकेंगे, जो कुपथ हो गये, जब तुम सुपथ पर
रहो। अल्लाह की ओर तुम सबको (परलोक में) फिर कर जाना है, फिर वह तुम्हें
तुम्हारे[1] कर्मों से सूचित कर देगा।
1. आयत का भावार्थ यह है कि यदि लोग कुपथ हो
जायें, तो उन का कुपथ होना तुम्हारे लिये तर्क (दलील) नहीं हो सकता कि जब
सभी कुपथ हो रहे हैं तो हम अकेले क्या करें? प्रत्येक व्यक्ति पर स्वयं
अपना दायित्व है, दूसरों का दायित्व उस पर नहीं, अतः पूरा संसार कुपथ हो
जाये तब भी तुम सत्य पर स्थित रहो।
التفاسير العربية:
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ شَهَٰدَةُ
بَيۡنِكُمۡ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ حِينَ ٱلۡوَصِيَّةِ ٱثۡنَانِ
ذَوَا عَدۡلٖ مِّنكُمۡ أَوۡ ءَاخَرَانِ مِنۡ غَيۡرِكُمۡ إِنۡ أَنتُمۡ
ضَرَبۡتُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَأَصَٰبَتۡكُم مُّصِيبَةُ ٱلۡمَوۡتِۚ
تَحۡبِسُونَهُمَا مِنۢ بَعۡدِ ٱلصَّلَوٰةِ فَيُقۡسِمَانِ بِٱللَّهِ إِنِ
ٱرۡتَبۡتُمۡ لَا نَشۡتَرِي بِهِۦ ثَمَنٗا وَلَوۡ كَانَ ذَا قُرۡبَىٰ وَلَا
نَكۡتُمُ شَهَٰدَةَ ٱللَّهِ إِنَّآ إِذٗا لَّمِنَ ٱلۡأٓثِمِينَ
हे ईमान वालो! यदि किसी के मरण
का समय हो, तो वसिय्यत[1] के समय तुममें से दो न्यायकारियों को अथवा
तुम्हारे सिवा दो अन्य व्यक्तियों को गवाह बनाये, यदि तुम धरती में यात्रा
कर रहे हो और तुम्हें मरण की आपदा आ पहुँचे। उन दोनों को नमाज़ के बाद रोक
लो, फिर वे दोनों अल्लाह की शपथ लें, यदि तुम्हें उनपर संदेह हो। वे ये
कहें कि हम गवाही के द्वारा कोई मूल्य नहीं खरीदते, यद्यपि वे समीपवर्ती
क्यों न हों और न हम अल्लाह की गवाही को छुपाते हैं, यदि हम ऐसा करें, तो
हम पापियों में हैं।
1. वसिय्यत का अर्थ है, उत्तरदान, मरणासन्न आदेश।
التفاسير العربية:
فَإِنۡ عُثِرَ عَلَىٰٓ أَنَّهُمَا ٱسۡتَحَقَّآ
إِثۡمٗا فَـَٔاخَرَانِ يَقُومَانِ مَقَامَهُمَا مِنَ ٱلَّذِينَ ٱسۡتَحَقَّ
عَلَيۡهِمُ ٱلۡأَوۡلَيَٰنِ فَيُقۡسِمَانِ بِٱللَّهِ لَشَهَٰدَتُنَآ
أَحَقُّ مِن شَهَٰدَتِهِمَا وَمَا ٱعۡتَدَيۡنَآ إِنَّآ إِذٗا لَّمِنَ
ٱلظَّـٰلِمِينَ
फिर यदि ज्ञान हो जाये कि वे
दोनों (साक्षी) किसी पाप के अधिकारी हुए हैं, तो उन दोनों के स्थान पर दो
अन्य गवाह खड़े हो जायेँ, उनमें से, जिनका अधिकार पहले दोनों ने दबाया है
और वे दोनों शपथ लें कि हमारी गवाही उन दोनों की गवाही से अधिक सही है और
हमने कोई अत्याचार नहीं किया है। यदि किया है, तो (निःसंदेह) हम अत्याचारी
हैं।
التفاسير العربية:
ذَٰلِكَ أَدۡنَىٰٓ أَن يَأۡتُواْ بِٱلشَّهَٰدَةِ
عَلَىٰ وَجۡهِهَآ أَوۡ يَخَافُوٓاْ أَن تُرَدَّ أَيۡمَٰنُۢ بَعۡدَ
أَيۡمَٰنِهِمۡۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱسۡمَعُواْۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي
ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡفَٰسِقِينَ
इस प्रकार अधिक आशा है कि वे
सही गवाही देंगे अथवा इस बात से डरेंगे कि उनकी शपथों को दूसरी शपथों के
पश्चात् न माना जाये। अल्लाह से डरते रहो, (उसका आदेश) सुनो और अल्लाह
उल्लंघनकारियों को सीधी राह नहीं[1] दिखाता।
1. आयत 106 से 108 तक में वसिय्यत तथा उस के
साक्ष्य का नियम बताया जा रहा है कि दो विश्वस्त व्यक्तियों को साक्षी
बनाया जाये, और यदि मुसलमान न मिलें तो ग़ैर मुस्लिम भी साक्षी हो सकते
हैं। साक्षियों को शपथ के साथ साक्ष्य देना चाहिये। विवाद की दशा में दोनों
पक्ष अपने अपने साक्षी लायें जो इन्कार करे उस पर शपथ है।
التفاسير العربية:
۞يَوۡمَ يَجۡمَعُ ٱللَّهُ ٱلرُّسُلَ فَيَقُولُ
مَاذَآ أُجِبۡتُمۡۖ قَالُواْ لَا عِلۡمَ لَنَآۖ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّـٰمُ
ٱلۡغُيُوبِ
जिस दिन अल्लाह सब रसूलों को
एकत्र करेगा, फिर उनसे कहेगा कि तुम्हें (तुम्हारी जातियों की ओर से) क्या
उत्तर दिया गया? वे कहेंगे कि हमें इसका कोई ज्ञान[1] नहीं। निःसंदेह तू ही
सब छुपे तथ्यों का ज्ञानी है।
1. अर्थात हम नहीं जानते कि उन के मन में क्या था, और हमारे बाद उन का कर्म क्या रहा?
التفاسير العربية:
إِذۡ قَالَ ٱللَّهُ يَٰعِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ
ٱذۡكُرۡ نِعۡمَتِي عَلَيۡكَ وَعَلَىٰ وَٰلِدَتِكَ إِذۡ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ
ٱلۡقُدُسِ تُكَلِّمُ ٱلنَّاسَ فِي ٱلۡمَهۡدِ وَكَهۡلٗاۖ وَإِذۡ
عَلَّمۡتُكَ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَۖ
وَإِذۡ تَخۡلُقُ مِنَ ٱلطِّينِ كَهَيۡـَٔةِ ٱلطَّيۡرِ بِإِذۡنِي فَتَنفُخُ
فِيهَا فَتَكُونُ طَيۡرَۢا بِإِذۡنِيۖ وَتُبۡرِئُ ٱلۡأَكۡمَهَ
وَٱلۡأَبۡرَصَ بِإِذۡنِيۖ وَإِذۡ تُخۡرِجُ ٱلۡمَوۡتَىٰ بِإِذۡنِيۖ وَإِذۡ
كَفَفۡتُ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ عَنكَ إِذۡ جِئۡتَهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ
فَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنۡهُمۡ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّبِينٞ
तथा याद करो, जब अल्लाह ने कहाः
हे मर्यम के पुत्र ईसा! अपने ऊपर तथा अपनी माता के ऊपर मेरा पुरस्कार याद
कर, जब मैंने पवित्रात्मा (जिब्रील) द्वारा तुझे समर्थन दिया, तू गहवारे
(गोद) में तथा बड़ी आयु में लोगों से बातें कर रहा था तथा तुझे पुस्तक,
प्रबोध, तौरात और इंजील की शिक्षा दी, जब तू मेरी अनुमति से मिट्टी से
पक्षी का रूप बनाता और उसमें फूँकता, तो वह मेरी अनुमति से वास्तव में
पक्षी बन जाता था और तू जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को मेरी अनुमति से स्वस्थ
कर देता था और जब तू मुर्दों को मेरी अनुमति से जीवित कर देता था और मैंने
बनी इस्राईल से तुझे बचाया था, जब तू उनके पास खुली निशानियाँ लाया, तो
उनमें से काफ़िरों ने कहा कि ये तो खुले जादू के सिवा कुछ नहीं है।
التفاسير العربية:
وَإِذۡ أَوۡحَيۡتُ إِلَى ٱلۡحَوَارِيِّـۧنَ أَنۡ
ءَامِنُواْ بِي وَبِرَسُولِي قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَٱشۡهَدۡ بِأَنَّنَا
مُسۡلِمُونَ
तथा याद कर, जब मैंने तेरे
ह़वारियों के दिलों में ये बात डाल दी कि मुझपर तथा मेरे रसूल (ईसा) पर
ईमान लाओ, तो सबने कहा कि हम ईमान लाये और तू साक्षी रह कि हम मुस्लिम
(आज्ञाकारी) हैं।
التفاسير العربية:
إِذۡ قَالَ ٱلۡحَوَارِيُّونَ يَٰعِيسَى ٱبۡنَ
مَرۡيَمَ هَلۡ يَسۡتَطِيعُ رَبُّكَ أَن يُنَزِّلَ عَلَيۡنَا مَآئِدَةٗ
مِّنَ ٱلسَّمَآءِۖ قَالَ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
जब ह़वारियों ने कहाः हे मर्यम
के पुत्र ईसा! क्या तेरा पालनहार ये कर सकता है कि हमपर आकाश से थाल
(दस्तरख्वान) उतार दे? उस (ईसा) ने कहाः तुम अल्लाह से डरो, यदि तुम वास्तव
में ईमान वाले हो।
التفاسير العربية:
قَالُواْ نُرِيدُ أَن نَّأۡكُلَ مِنۡهَا
وَتَطۡمَئِنَّ قُلُوبُنَا وَنَعۡلَمَ أَن قَدۡ صَدَقۡتَنَا وَنَكُونَ
عَلَيۡهَا مِنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ
उन्होंने कहाः हम चाहते हैं कि
उसमें से खायें और हमारे दिलों को संतोष हो जाये तथा हमें विश्वास हो जाये
कि तूने हमें जो कुछ बताया है, सच है और हम उसके साक्षियों में से हो
जायेँ।
التفاسير العربية:
قَالَ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَ ٱللَّهُمَّ رَبَّنَآ
أَنزِلۡ عَلَيۡنَا مَآئِدَةٗ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ تَكُونُ لَنَا عِيدٗا
لِّأَوَّلِنَا وَءَاخِرِنَا وَءَايَةٗ مِّنكَۖ وَٱرۡزُقۡنَا وَأَنتَ خَيۡرُ
ٱلرَّـٰزِقِينَ
मर्यम के पुत्र ईसा ने
प्रार्थना कीः हे अल्लाह, हमारे पालनहार! हमपर आकाश से एक थाल उतार दे, जो
हमारे तथा हमारे पश्चात् के लोगों के लिए उत्सव (का दिन) बन जाये तथा तेरी
ओर से एक चिन्ह (निशानी)। तथा हमें जीविका प्रदान कर, तू उत्तम जीविका
प्रदाता है।
التفاسير العربية:
قَالَ ٱللَّهُ إِنِّي مُنَزِّلُهَا عَلَيۡكُمۡۖ
فَمَن يَكۡفُرۡ بَعۡدُ مِنكُمۡ فَإِنِّيٓ أُعَذِّبُهُۥ عَذَابٗا لَّآ
أُعَذِّبُهُۥٓ أَحَدٗا مِّنَ ٱلۡعَٰلَمِينَ
अल्लाह ने कहाः मैं तुमपर उसे
उतारने वाला हूँ, फिर उसके पश्चात् भी जो कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, तो मैं
निश्चय उसे दण्ड दूँगा, ऐसा दण्ड[1] कि संसार वासियों में से किसी को, वैसी
दण्ड नहीं दूँगा।
1. अधिक्तर भाष्यकारों ने लिखआ है कि वह थाल आकाश से उतरा। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
وَإِذۡ قَالَ ٱللَّهُ يَٰعِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ
ءَأَنتَ قُلۡتَ لِلنَّاسِ ٱتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَٰهَيۡنِ مِن دُونِ
ٱللَّهِۖ قَالَ سُبۡحَٰنَكَ مَا يَكُونُ لِيٓ أَنۡ أَقُولَ مَا لَيۡسَ لِي
بِحَقٍّۚ إِن كُنتُ قُلۡتُهُۥ فَقَدۡ عَلِمۡتَهُۥۚ تَعۡلَمُ مَا فِي
نَفۡسِي وَلَآ أَعۡلَمُ مَا فِي نَفۡسِكَۚ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّـٰمُ
ٱلۡغُيُوبِ
तथा जब अल्लाह (प्रलय के दिन)
कहेगाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह को
छोड़कर मुझे तथा मेरी माता को पूज्य (आराध्य) बना लो? वह कहेगाः तू पवित्र
है, मुझसे ये कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार
नहीं? यदि मैंने कहा होगा, तो तुझे अवश्य उसका ज्ञान हुआ होगा। तू मेरे मन
की बात जानता है और मैं तेरे मन की बात नहीं जानता। वास्तव में, तू ही
परोक्ष (ग़ैब) का अति ज्ञानी है।
التفاسير العربية:
مَا قُلۡتُ لَهُمۡ إِلَّا مَآ أَمَرۡتَنِي بِهِۦٓ
أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمۡۚ وَكُنتُ عَلَيۡهِمۡ شَهِيدٗا
مَّا دُمۡتُ فِيهِمۡۖ فَلَمَّا تَوَفَّيۡتَنِي كُنتَ أَنتَ ٱلرَّقِيبَ
عَلَيۡهِمۡۚ وَأَنتَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ
मैंने केवल उनसे वही कहा था,
जिसका तूने आदेश दिया था कि अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम
सभी का पालनहार है। मैं उनकी दशा जानता था, जब तक उनमें था और जब तूने मेरा
समय पूरा कर दिया[1], तो तू ही उन्हें जानता था और तू प्रत्येक वस्तु से
सूचित है।
1. और मुझे आकाश पर उठा लिया, नबी (सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम) ने कहाः जब प्रलय के दिन कुछ लोग बायें से धर लिये जायेंगे
तो मैं भी यही कहूँगा। (बुख़ारीः4626)
التفاسير العربية:
إِن تُعَذِّبۡهُمۡ فَإِنَّهُمۡ عِبَادُكَۖ وَإِن
تَغۡفِرۡ لَهُمۡ فَإِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
यदि तू उन्हें दण्ड दे, तो वे तेरे दास (बन्दे) हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो वास्तव में तू ही प्रभावशाली गुणी है।
التفاسير العربية:
قَالَ ٱللَّهُ هَٰذَا يَوۡمُ يَنفَعُ
ٱلصَّـٰدِقِينَ صِدۡقُهُمۡۚ لَهُمۡ جَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا
ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ رَّضِيَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ
وَرَضُواْ عَنۡهُۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ
अल्लाह कहेगाः ये वो दिन है,
जिसमें सचों को उनका सच ही लाभ देगा। उन्हीं के लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें
नहरें प्रवाहित हैं। वे उनमें नित्य सदावासी होंगे, अल्लाह उनसे प्रसन्न
हो गया तथा वे अल्लाह से प्रसन्न हो गये और यही सबसे बड़ी सफलता है।
التفاسير العربية:
لِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا
فِيهِنَّۚ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرُۢ
आकाशों तथा धरती और उनमें जो कुछ है, सबका राज्य अल्लाह ही का[1] है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
1. आयत 116 से अब तक की आयतों का सारांश यह है कि
अल्लाह ने पहले अपने वह पुरस्कार याद दिलाये जो ईसा अलैहिस्सलाम पर किये।
फिर कहा कि सत्य की शिक्षाओं के होते तेरे अनुयायियों ने क्यों तुझे और
तेरी माता को पूज्य बना लिया? इस पर ईसा अलैहिस्सलाम कहेंगे कि मैं इस से
निर्दोष हूँ। अभिप्राय यह है कि सभी नबियों ने एकेश्वरवाद तथा सत्कर्म की
शिक्षा दी। परन्तु उन के अनुयायियों ने उन्हीं को पूज्य बना लिया। इस लिये
इस की भार अनुयायियों और वे जिस की पूजा कर रहे हैं, उन पर है। वह स्वयं इस
से निर्दोष हैं।
التفاسير العربية:
ترجمة معاني سورة:
المائدة
ترجمة معاني القرآن الكريم - الترجمة الهندية -
ترجمة معاني القرآن الكريم إلى اللغة الهندية، ترجمها عزيز الحق العمري.
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